Saturday, February 8, 2020

260..छत्तीसगढ़ में बरसात की वापसी हो गई है

सप्रेम अभिवादन
लगता है छत्तीसगढ़ में
बरसात की वापसी हो गई है
इसे ही छत्तिसगढ़िया लोग
पनिया अकाल कहते है
दलहन की फसल खेतों में है
कीड़ों का प्रादुर्भाव हो रहा है
फलियों पर..
महंगी हो जाएगी दाल
सब्जियां भी कीड़े वाली आ रही है
विरोधी पार्टियां सरकार को दोष दे रही है
ठीक से पूजा-अर्चना नहीं हुई
......
चलिए चलें आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर..

उसने कहा था
आज गुलाब का दिन है
न गुलाब लेने का 
न देने का, 
बस गुलाब हो जाने का दिन है


कवि पढ़ लेता है
वह सब भी
जो लिखा ही न गया कभी
कवि सुन लेता है
वह सब भी
जो कहा ही न गया कभी


माँ हूँ तुम्हारी
चाहती हूँ मैं 
कि मेरी खुशियाँ तुम्हे लग जाये 
और , तुम्हारे दुखों को मैं अपना लू 
आँख में आये आंसू तुम्हारे 
तो अपनी पलकों में सहेज लू 
कही मिले ना आसरा तुझे 


एक गुलाब की वेदना
काँटो में भी महफूज़ थे हम।
हाँ तब कितने ख़ुश थे हम।

खिल-खिलाते थे ,सुरभित थे ,
हवाओं से खेलते झूलते थे ,
हम मतवाले कितने ख़ुश थे ।


होना तेरा ....
तेरे ना होने में 
हर्षाये रहता है मुझ को, 
एक खुशबू अजानी सी 
महकाये रहती है मुझे.... 

आज बस
कल फिर मिलते हैं
सादर

4 comments:

  1. बहुत सुंदर अंक।
    दीप्ती जी की ये पंक्तियाँ मन को छू गई हैं -
    उसने कहा था
    आज गुलाब का दिन है
    न गुलाब लेने का
    न देने का,
    बस गुलाब हो जाने का दिन है।

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  2. सुंदर अंक ।
    सचमुच बे मौसम की बरसात खेती और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानी कारक है।
    सुंदर रचनाओं में मेरे गुलाब की वेदना को जगह देने के लिए बहुत बहुत आभार।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

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  3. बहुत खूब लिखा है सभी रचनाकारों ने,आपने भी चुन चुन कर रचनाएँ प्रस्तुत की है। सभी को शुभकामनाएं।

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  4. कायनात भी रो रही है हमारी करतूतों पर

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