सादर अभिवादन
आज हम सखी श्वेता सो कह चुके थे
आज आप प्रस्तुति दे दीजिए
अभी हमारे इन्टर्नेट ले करवट बदली
सो आ गए हम...
देखिए आज की रचनाएँ
आज हम सखी श्वेता सो कह चुके थे
आज आप प्रस्तुति दे दीजिए
अभी हमारे इन्टर्नेट ले करवट बदली
सो आ गए हम...
देखिए आज की रचनाएँ
अब तक "मन के डेटिंग" पर
मिली हो जब भी तुम तो ....
कृत्रिम रासायनिक
सौंदर्य- प्रसाधनों और सुगंधों की
परतों में लिपटी
किसी सौंदर्य-प्रसाधन की
विज्ञापन- बाला की तरह
चकपक करती परिधानों में
शायद गाँठ बांधी थी नदी
एक के अनुपस्थिति में
दूसरे की
दूसरे की
पहले की अनुपस्थिति में
“आज बातचीत नहीं, एक कहानी सुनो ;
एक गाँव में दो मूरख रहते थे—हक्कन और फक्कन।
दोनों के मकान अगल-बगल थे। बीच की दीवारें कुछ ऐसी
कि मौका-बेमौका जब चाहतीं, ऊँची-नीची और सपाट होती रहतीं।
हक्कन की माँ ने एक दिन उसे बताया—‘बेटा, फक्कन ने भी
मेरे ही पेट से जनम लिया है। वह भाई है तेरा।.
कि
सुख का
अलग से कहीं कोई अस्तित्व नहीं
दुःख में साथ मुस्कुराना ही सुख है!
इश्क़ में यूँ उतर जाना
बेवजह तो नहीं है,
इस दर्द से गुज़र जाना
बेवजह तो नहीं है...
अब बस..
आज्ञा दें
यशोदा
लाज़बाब प्रस्तुति!!!
ReplyDeleteगज़ब
ReplyDeleteशुभ संध्या छोटी बहना
यशोदा जी आभार आपका इस अंक के आसमान में मेरे संकलित शब्दों को पंख देने के लिए। वैसे क्या हो गया आपके इंटरनेट को भला ....
ReplyDeleteलाजवाब और बेहतरीन संकलन ।
ReplyDeleteयशोदा जी अभी कुछ दिन पहले ही किसी अंक में "अप्रूवल" जैसे शब्द या तकनीक की चर्चा हुई थी। आज भी जिनकी रचनाएँ ली गई हैं, उनमे से कई लोगों के ब्लॉग पर यही दिखा।
ReplyDeleteक्या ये ब्लॉग की दुनिया का चलन है या श्रेष्ठ लोग इसे व्यवहार में लाते हैं !?
सब को अपने हिसाब से जीने का हक है। जोर किसलिये सुबोध जी? :)
Deleteवाह
ReplyDeleteसुंदर संयोजन!
ReplyDeleteआभार!
वाह!!सुंदर प्रस्तुति!
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तूति।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तूति 👌👌👌
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