Monday, August 12, 2019

81..दुःख में साथ मुस्कुराना ही सुख है

सादर अभिवादन
आज हम सखी श्वेता सो कह चुके थे
आज आप प्रस्तुति दे दीजिए
अभी हमारे इन्टर्नेट ले करवट बदली
सो आ गए हम...
देखिए आज की रचनाएँ

अब तक "मन के डेटिंग" पर
मिली हो जब भी तुम तो ....
कृत्रिम रासायनिक
सौंदर्य- प्रसाधनों और सुगंधों की
परतों में लिपटी
किसी सौंदर्य-प्रसाधन की
विज्ञापन- बाला की तरह
चकपक करती परिधानों में




शायद गाँठ बांधी थी नदी
एक के अनुपस्थिति में 
दूसरे की 
दूसरे की 
पहले की अनुपस्थिति में




मेरी फ़ोटो
“आज बातचीत नहीं, एक कहानी सुनो ; 
एक गाँव में दो मूरख रहते थे—हक्कन और फक्कन। 
दोनों के मकान अगल-बगल थे। बीच की दीवारें कुछ ऐसी 
कि मौका-बेमौका जब चाहतीं, ऊँची-नीची और सपाट होती रहतीं। 
हक्कन की माँ ने एक दिन उसे बताया—‘बेटा, फक्कन ने भी 
मेरे ही पेट से जनम लिया है। वह भाई है तेरा।.




मेरी फ़ोटो
कि
सुख का
अलग से कहीं कोई अस्तित्व नहीं 
दुःख में साथ मुस्कुराना ही सुख है!




मेरी फ़ोटो
इश्क़ में यूँ उतर जाना 
बेवजह तो नहीं है, 
इस दर्द से गुज़र जाना 
बेवजह तो नहीं है... 


अब बस..
आज्ञा दें
यशोदा


11 comments:

  1. लाज़बाब प्रस्तुति!!!

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  2. यशोदा जी आभार आपका इस अंक के आसमान में मेरे संकलित शब्दों को पंख देने के लिए। वैसे क्या हो गया आपके इंटरनेट को भला ....

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  3. लाजवाब और बेहतरीन संकलन ।

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  4. यशोदा जी अभी कुछ दिन पहले ही किसी अंक में "अप्रूवल" जैसे शब्द या तकनीक की चर्चा हुई थी। आज भी जिनकी रचनाएँ ली गई हैं, उनमे से कई लोगों के ब्लॉग पर यही दिखा।
    क्या ये ब्लॉग की दुनिया का चलन है या श्रेष्ठ लोग इसे व्यवहार में लाते हैं !?

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    1. सब को अपने हिसाब से जीने का हक है। जोर किसलिये सुबोध जी? :)

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  5. सुंदर संयोजन!
    आभार!

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  6. वाह!!सुंदर प्रस्तुति!

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  7. सुंदर प्रस्तूति।

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  8. सुंदर प्रस्तूति 👌👌👌

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