Sunday, August 4, 2019

73....मेरा वजूद नहीं खोया कहीं

सादर अभिवादन
आज थोड़ा कम परेशान हैं
कल अधिक थे...
कभी कम-कभी ज्यादा
चलते रहता है

आइए चलें रचनाओं की ओर..

जिनके संग में मिलकर मन की
दुख सुख रोष सुनाते हैं
जिनकी स्नेहिल उष्मा पाकर
मृदुल अधर मुस्काते हैं.
विघ्नों को भी गले लगाते
जो कांटों में राह बनाते हैं


नील नभ की छाँह में ठहरा पथिक हूँ,
मैं भटकता दर-ब-दर, बादल नहीं हूँ।

एक अंधी दौड़ है, ये दौर अंधा !
मैं किसी भी दौड़ में शामिल नहीं हूँ।




पानी से जीवन हँसे, 
पानी से प्रकृति सजे। 
पानी जीवन की मुस्कान, 
पानी ही ले-लेता जान। 
पानी नहीं तो त्राहि-त्राहि,


थी परछाईं तेरी, या वो था हमसाया मेरा! 
मुझसे ही जुदा, था कहीं साया मेरा! 
वो तुम थे, या थी बस परछाईं तेरी, 
थी खुश्बू कोई, जिनसे मिलती थी तन्हाई मेरी, 
महक उठता था, चमन, वो गुलशन सारा, 
वो थे तुम, या था वो भरम सारा!


मेरा वजूद नहीं खोया कहीं 
मेरा वजूद ही मेरी गजल है 
है अलग सी पहचान मेरी 
जितना भी बड़ा गुलशन हो 
खुशबू मुझ में गुलाब जैसी है 

इज़ाज़त दें
यशोदा..


9 comments:

  1. वाह सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  2. मनोरम संकलन की प्रस्तुति

    ReplyDelete
  3. प्रत्येक रचना प्रशंसा के लायक है। आपके द्वारा एक सुन्दर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सुन्दर संकलन

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर संकलन, मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  6. एक से बढ़ कर एक अत्यंत सुन्दर रचनाओं का संकलन।

    ReplyDelete
  7. वाह बेहतरीन रचना।
    लाजवाब।

    ReplyDelete
  8. सुंदर संकलन सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार यशोदा जी

    ReplyDelete
  9. धन्यवाद यशोदा जी मेरी रचना शामिल करने के लिए |

    ReplyDelete