स्नेहिल नमस्कार
----------
एक खूबसरत शाम में
आपका स्वागत है-
क्यों न कुछ दर्द उम्मीद की दरिया में धोया जाय
आसान नहीं फिर भी कुछ सपने बंजर आँखों में बोया जाय।
★★★★★★★
घास उगी सूखे आँगन
प्यास बुझी ओ बंजर धरती तृप्त हुई
नीरस जीवन से तुलसी भी मुक्त हुई,
झींगुर की गूँजे गुंजन
घास उगी ...
घास उगी वन औ उपवन
गीले सूखे चहल पहल कुछ तेज हुई
हरा बिछौना कोमल तन की सेज हुई
दृश्य है कितना मन-भावन
घास उगी ...
★★★★★★
एक घड़ा खटिया से दूर
दवाइयां अंगीठी में ऊंचाई पर
चश्मा भी इधर ही कहीं होगा
ये सब मेरी पहुँच से दूर
लेकिन मेरे लिए छोड़े।
एक जर्जर देह
जिसमें कोई शक्ति शेष न रही
और झाग के माफ़िक सांसें,
मुझे ही मेरे लिए छोड़ दिया।
★★★★★★
मुस्कुराहट
छलकी अनायास
सूर्य आभा के साथ
सूर्य आभा के साथ
निर्विघ्न खुले
मन की देहरी के
सांकल चढ़े द्वार
★★★★
किसान की कमर पर मार हथौड़ा ,
प्लास्टिक की बनी सब्जी-तरकारी,
शौहरत की महक में मरी मानवता ,
दिखावे में डूबी जनता बेचारी,
तोड़ इसका बतलाओ साधो !
गर्दिश में जनता सारी |
★★★★★
ये ऋतु बड़ी सुहानी है,
हर ओर पानी ही पानी है।
मन मेरा फिर हरषाया है,
भीगने का मौसम आया है।
नाचते मोर बागों में,
पपीहा तान छेड़े हैं।
कोयल ने सुर लगाया है,
भीगने का मौसम आया है।
हर ओर पानी ही पानी है।
मन मेरा फिर हरषाया है,
भीगने का मौसम आया है।
नाचते मोर बागों में,
पपीहा तान छेड़े हैं।
कोयल ने सुर लगाया है,
भीगने का मौसम आया है।
★★★★★★
रचनाएँँ आपको कैसी लगी?
कृपया अपनी.बहुमूल्य प्रतिक्रिया
अवश्य दीजिएगा।
बहुत बढ़िया..
ReplyDeleteसारी रचनाएँ बेहतरीन..
सादर....
सुंदर सूत्र ...
ReplyDeleteआभार मेरी रचना को शामिल करने ke लिए ...
बहुत सुन्दर संकलन श्वेता जी । बहुत बहुत आभार मेरी रचना को मान देने के लिए ।
ReplyDeleteसुन्दर संकलन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति श्वेता दी, मुझे स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार आप का
ReplyDeleteसादर
सुन्दर सूत्र सुन्दर संयोजन।
ReplyDeleteक्यों न कुछ दर्द उम्मीद की दरिया में धोया जाय
ReplyDeleteआसान नहीं फिर भी कुछ सपने बंजर आँखों में बोया जाय.... वाह वाह.
ये शाम की हलचल है ऐसा कहना गलत तो नहीं होगा.
सुंदर लिंक्स हैं.
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक रचनाएं,बेहद खूबसूरत संयोजन
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी
सुंदर लिंक सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDelete