स्नेहिल अभिवादन
चलिये बढ़ते है आज के सङ्कलन की ओर ----
रोटी, मन, गाँव, शहरसब्जी तरकारी में
फूलों की क्यारी में रोटी के स्वाद में
पापड़ अचार में
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कोई एक पंक्ति पंक्तियों के बीच
से चुन कर मन मौज से खड़े हो लेना
कहीं भी
पीड़ा देता ही है
कभी ना कभी
कितनी निर्भर करता है -
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सोचती हूँ,
अब मान ही लूँ
कि मै ही,
हाँ सिर्फ मै ही हूँ
जिम्मेदार
मेरे आस पास
घटती
हर उन दुर्घटनाओं का
जिनको भले
ही कोई उगाये
खरपतवार मै ही हूँ
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ना यह मुश्किल है ना मुश्किल वह है।
त्यागना अहम-वहम व होना प्रसह है।
गर्दन अपनी सर अपना पूरा हर सपना,
जीना चाहूँ मरने के बाद कर्म का गह है।
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मय है
नींद है तेरी पलकों में और ख़्वाब मुझे दिखलाए है
मय है तेरी आँखों में और मुझ पे नशा सा तारी है
नींद है तेरी पलकों में और ख़्वाब मुझे दिखलाए है
पुराने साल की ठिठुरी हुई परछाइयाँ सिमटीं
नए दिन का नया सूरज उफ़ुक़ पर उठता आता है
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सादर
अनीता सैनी
बहुत सुन्दर सूत्रों के साथ उम्दा संकलन ।
ReplyDeleteशुभ संध्या..
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाएँ...
सादर..
सस्नेहाशीष संग हार्दिक आभार बहना
ReplyDeleteबहुत सुंदर संकलन
बहुत ही प्यारा संकलन अनीता जी !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संकलन
ReplyDeleteसुन्दर संकलन 👌👌👌
ReplyDeleteसुन्दर अंक। आभार अनीता जी।
ReplyDeleteबहुत शानदार सांध्य दैनिक।
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