सादर शुभकामनाएँ
भगवान श्री कृष्ण को
भगवान श्री कृष्ण को
चलिए चलें आज की रचनाओं की ओर..
जब-जब फैला है तमस,
तब-तब किया उजास
अपनों का जमघट, मगर;
हो इक तुम ही पास,
किताबें कह रही थीं,
जब हमें फाड़ा जाता है
और हमारे पन्नों में
भेलपुरी परोसी जाती है,
तुम्हें क्या बताएं,
हमें कितना दर्द होता है?
यह कैसा मर्म कर्मो का
जीवन संदीप्त पा नहीं सकता
नीली छतरी के नीचे कभी
छत खुद की डाल नहीं सकता
हर मुश्किल राह आसान हो जाएगी तेरी
धीरज रख आगे कदम बढ़ा के तो देख
बहुत हुआ तेरा अब सुनहरे ख्वाब बुनना
नींद त्याग और बाहर निकल के तो देख
कैसे-कैसे लोग वैतरणी तर गए सरपट
याद कर फिर उचक-दुबक चल के तो देख
और फिर यूँ हुआ
धीरे धीरे उतरने लगा
उगते सूरज सा वो चटक लाल रंग !
जंगल की लाट सा था वो, और
धीरे धीरे धूसर राख़ होने लगा !
ठंडी ऊसर राख !
द्रोपती का तन ढांकने वाला कृष्ण
आधुनिक काल में
नारियों को देखते ही
मंत्र मुग्ध हो जाता है
चीरहरण के समय की
अपनी उपस्थिति को भूल जाता है
अब बस..
अधिक होने से लताड़ मिलेगी
सादर..
यशोदा
अधिक होने से लताड़ मिलेगी
सादर..
यशोदा
व्वाहहहह...
ReplyDeleteउत्तम...
सादर..
बहुत सुंदर प्रस्तुति भुमिका मन मोह गई ।
ReplyDeleteसुंदर लिंक चयन ।
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
वाह बेहतरीन प्रस्तुति।सादर।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति, जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteसुन्दर लिंक्स.मेरी कविता शामिल की.आभार
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति में मेरी रचना समिल्लित करने हेतु आभार!
ReplyDeleteसुंदर लिंक संजोये हैं आपने..
ReplyDeleteकृष्णमयी हुआ पढ़ा है मंच।
सुंदर प्रस्तुति, जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद। .युहीं साथ बनाएं रखें
वाह बेहद शानदार प्रयास .....
ReplyDeleteप्रस्तुतिकरण एवम चयन अनुपम