Thursday, February 18, 2021

635 ..हर शाम की तरह यह शाम भी उदास है

सादर वन्दे
देखते ही देखते फरवरी के
अट्ठारह दिन निकल गए....
और फरवरी होती भी छोटी है..आराम से
कहीं से भी निकल कर भाग जाती है
खैर शान्त सी रही फरवरी..आभार फरवरी को
तारीफ कर रही हूँ इसका मतलब ये नहीं
बचे हुए दिन में कहर ढ़ा दो...
चलिए चलें रचनाओं की ओर..

एक शानदार कहानी
कामयाबी आपके ख़ुशी में छुपी है,
और अच्छे दिनों की उम्मीद में
अपने वर्तमान को ख़राब नहीं करें।
और न ही कम अच्छे दिनों में
ज्यादा अच्छे दिनों को याद करके
अपने वर्तमान को ख़राब करना है
*****
बेहद हृदयस्पर्शी, भावपूर्ण सृजन
एकाकी रहने की जिद नही
ये तो है नियति मेरी
खुद से मिल खुद में रहूंगी
यही  अंतिम परिणिति मेरी
भ्रम के इस  गहरे भंवर से  
अब निकलने दो मुझे !

एक ठहरी हुई आकांक्षा...
आधे जो... वादे है
पूरे हो ...इरादें है
इक छोटा मकां सा हो
तारों का जहां सा हो
मकां ये घर हमारा हो
दिल के ये इरादें है

एक आशावादी रचना...
मैं स्त्री हूँ
मैं सपने देख भी सकती हूँ
सपने चुरा भी सकती हूँ
पर सपनों में जीना
तमाम पाबंदियों के बीच
सपनों को यूं
आकाश से उठा लाना
नहीं संभव है

विकल मन के मर्मान्तक भावों को उकेरती रचना
हर शाम की तरह यह शाम भी उदास है,
अब कौन मनाये इस नासमझ रूठे को ।
बढ़ते हैं क़दम कि ख़त्म कर दूँ मैं सब कुछ,
पर इस बार भी मुझे तेरी रजा चाहिए ।
...
आज बस
सादर

2 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति..
    आभार..

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  2. बेहद सुंदर प्रस्तुति

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