Friday, February 5, 2021

622...बोलना, जरूरी है क्या?

सांध्य अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन
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अपने अवलोकन से कौंधी
रोशनी का
अनुवाद करना 
अपनी दृष्टिकोण से,
प्रत्येक चित्र का
गूढ़ार्थ हो या 
विश्लेषणात्मक सत्य
आवश्यक नहीं...
सरलतम् रेखाओं 
से बने साधारण चित्रों में 
 निहित हो सकता है
जीवन सौंदर्य।

#श्वेता

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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-

जीवन के रीते तिरेपन बसंत

बसंत की 
प्रतीक्षा का 
हो न कभी अंत
प्रकृति की 
सुकुमारता का 
क्रम-अनुक्रम  
चलता रहे 

प्रेम कलह के इस रूत में 

प्रेम कलह के इस रुत में
पल-पल , कलकल , लगन आयुत में
हास-उपहास , राग-उपराग हुआ है
कल्प कलेवरों का , खेल-खिलौना
जैसे कनखी ही कनखी में 
हो रहा हो , कोई नेही टोटका-टोना
या चहुंओर एक-दूजे का , हो खुला आमंत्रण
या मोहन-सम्मोहन का , हो जंतर-मंतर 
या कि कर गया हो कोई , विवश-सा वशीकरण

दरारों में दर्ज आदमी

अब गहरे उकेरा जा रहा है।
दरारों में 
एक दीवार पर
वर्तमान
उकेरा जा रहा है
उसकी पीठ पर 
भविष्य।
उबकी भीड़ लिखी नहीं जा सकती
केवल 
महसूस की जा सकती है।
दरारों में


पर मुझसे दूर न हुईं
इनको भुलाने की फ़नकारी में
मैं माहिर न हो सकी
चाह कर भी ..... 
टूटता नहीं, रिश्ता मेरा 
इन ज़िद्दी यादों से !!!
....

बोलना, जरूरी है क्या?



हदें, कुछ सोचकर बनाई गई होंगी. शायद अतिरेक रोकने के लिए. लेकिन बोलने की आदत लग जाए, तो बोलते रहेंगे, नए सीन क्रिएट करते रहेंगे. अपनी ही बातों में फंसते रहेंगे, पर बोलेंगे. क्योंकि बोलना ही है. आदत है. अच्छी हो या बुरी, पर है तो है।
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आज बस इतना ही

कल मिलिए दिव्या से।

#श्वेता




6 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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  2. व्वाहहह...
    बेहतरीन अंक..
    सादर..

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  3. जी बहुत शानदार अंक...। बधाई

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  4. जीवन के सौंदर्य को तो यहाँ आकर भी देखा जा सकता है । सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार ।

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    1. सब अब
      फेसबुकींग सीख गए हैं
      भूल चुके सब ब्लॉगिंग..
      आभार..
      सादर..

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  5. वाह, बहुत सुंदर संयोजन

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