Wednesday, February 17, 2021

634 ...सबसे महत्त्वपूर्ण बात कि टिकट कट गया है

सादर अभिवादन
एल्लो कल्लो बात
क्या किसी को  परदेश मे रहना 
कभी अच्छा लगा है
सोचती हूँ..कैसा परदेश
मेरे बेटे-बहू जहाँ हैं
उसे कैसे परदेश कह सकते हैं
सुन्दर स्वच्छ देश को भला
कैसे परदेश कह सकते हैं....
पर मातृभूमि तो मातृभूमि ही है न
लगाव तो हट नहीं न सकता
.....
रचनाएँ.....

मांग क्यों होती सुधा की
चोंट खा भीषण छुधा की
छीनता आहार कोई।
प्यार कोई।।

रिक्त हो उर-भावना से
क्रूरता से, यातना से
जीतता संसार कोई।
प्यार कोई।।


अलबिदा मौसम सर्दी  का अलबिदा
इस  बार  बहुत कष्ट दिया तुमने
बिना गर्म कपड़ों के फुटपाथ  पर
रात कैसे गुजरती होगी  वहां रहने वालों से पूंछो |


भँवर या प्रतिश्राव, तीव्र ये बहाव,
समेट लूँ, सारे बहते भाव!
रोक लूँ, ले चलूँ, ऊँचे किनारों पर,
बिखर जाने से पहले!


भूमिगत जल स्रोत की गहराई
किसे पता,वक़्त छीन लेता है
चेहरे का ठिकाना,
दस्तक भी धीरे धीरे हो जाते हैं
निःशब्द,
किसी और के मार्फ़त,


पार्थक्याश्रय–
आईना की किरचें
एड़ी में चुभे
"जाना जरूरी नहीं होता तो जरूर रुक जाता बेटा जी।
पेंशन सुचारू रूप से चल सके उसके लिए
लाइव सार्टिफिकेट के लिए सशरीर उपस्थिति होगी
तथा एक जरुरी मीटिंग है उसमें शामिल होना है
और सबसे महत्त्वपूर्ण बात कि
टिकट कट गया है।"
....
वस
सादर


5 comments:

  1. शुभ संध्या। ।।।।
    अलबिदा मौसम सर्दी का अलबिदा...

    सुन्दर अंक

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  2. असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
    मातृभूमि तो मातृभूमि ही है न
    लगाव तो हट नहीं न सकता

    –सत्य कथन

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  3. धन्यवाद मेरी रचना शामिल करने के लिए |

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  4. सभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ मुखरित मौन, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार - - नमन सह।

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