Friday, February 12, 2021

629 ..झुकी पीठ को मिला किसी हथेली का स्पर्श तन गई रीढ़.

सादर अभिवादन...
अवकाशोपरान्त आज में हूँ
हम कुछ नहीं बता सकते
प्रेम-दिवस के बारे में
दिव्या मनाती थी विवाह पहले
वैलेन्टाईन डे
...
पढ़िए रचनाएँ......


लोभ मद के फेर में पड़ सुख भटकता जा रहा अब
प्राप्ति की इस लालसा में सत्य की मंजिल ढ़ही है।।

मृत्यु की आहट सुनाकर जब प्रलय भी काँप जाए
फिर विधाता सोचता ये काल की कैसी बही है।।


झुकी पीठ को मिला
किसी हथेली का स्पर्श
तन गई रीढ़.

महसूस हुई कन्धों को
पीछे से,
किसी नाक की सहज उष्ण निराकुल साँसें
तन गई रीढ़ .


बहुत सारी चिड़ियाँ
तार पर बैठी हैं क़तार में,
जैसे सुस्ता रही हों
एक लम्बी उड़ान के बाद
या तैयारी में हों
एक लम्बी उड़ान की.


सारी रात अरण्य जागता रहा,
सो गई नदी, सो गया सुदूर तलहटी का गांव,
कुछ जुगनुओं की बस्ती यूँ ही
जलती बुझती रही, तुम आते जाते रहे,
सांसों को, न मिल सका,
पल भर का भी ठहराव,


बिन तेरे ये रातें भी बढ़ी अजीब सी हो जाती हैं
तुम साथ होते हो तो रात बातों में गुजर जाती हैं
बिन तेरे ये रातें मुझे सोने ही नहीं देती हैं
तुम साथ होते हो तो तेरी बाहों के सिरहाना न जाने कब सुला देता हैं

मै भारत-भूमि !
ना जाने कब से ढूंढ रही हूँ
अपने हिस्से की
रोशनी का टुकड़ा….
लेकिन पता नहीं क्यो
भ्रष्ट अवव्यस्था के ये अँधेरे
इतने गहरे हैं
.....
बस
कल आएगी सखी श्वेता
सादर


3 comments:

  1. जी शुक्रिया आदरणीया मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार
    सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई

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  2. सुंदर संकलन.मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार.

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