Saturday, February 13, 2021

630...मोरपंख

सांध्य दैनिक 
शनिवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन
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मधुकर के मृदु चुंबन पर शरमायी कली पलक उघारी।
सरस सहज मुदित मधुर बाल-विहंगों की  किलकारी।।

ऋतुओं जैसे जीवन पथ पर सुख-दुख की है साझेदारी।
भूल के पतझड़ बांह पसारो अब बसंत की है तैय्यारी।।
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आइये आज की रचनाओं का आनंद लें-

वो बचकानी बातें

धरते थे 
मोरपंख भी 
कभी-कभी
अपनी कॉपी
या किताबों में 
चूर्ण के साथ
खल्ली के ,
एक और 
नए मोरपंख 
पैदा होने के 
कौतूहल भरे

कोई इरादा नहीं है 

मृतप्राय जीवाश्मों-सा
कोई भी अन्य लोलुप इन्द्रियाँ 
मुझे देखे , सुने , सूंघे या छुए
मेरे इजाजत के बगैर
क्योंकि मेरा होना , हँसना , बोलना
किसी प्रमापक पर आश्रित नहीं है
अब जिंदगी के खाते में आवक कम 
और जावक बढ़ने लगी,
बेलेंस घट रहा है, 
आए दिन के अँधड़ तूफान से दरवाजे बंद होते
पर खोले भी नहीं जाते, 
क्योंकि इतने में दूसरा अंधड़ आ धमकता है., 
दरवाजे बंद ही रह जाते हैं.
रोशनदान तो अब हमेशा के लिए बंद ही हो गए,
अब जिंदगी आती भी होगी 
तो सदा ही लौट जाती होगी,
बंद दरवाजों को देखकर, 
घर में जिंदगी का आना अब बंद हो गया है

आकाश पार कहीं

तलाशता है अक्षय प्रेम की विलुप्त
मणि, ये खोज है, कई जन्मों से
कहीं अधिक गहरा, उभरने
दो गुमशुदा इश्क़ को
गहन समुद्र तल
से ज़रा ज़रा।
सभी शै
को है, एक दिन धूसर धुंध में खो जाना,

जेलों में जिस्म तो क़ैद रहे...

आशावान अंतरात्मा के 
पलते मीठे बेर  
चीख़-चीख़कर
अपने पकने की 
मौसमी ख़बर  
सैटेलाइट को ही 
बार-बार बता रहे
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आज के लिए बस इतना ही।

#श्वेता

7 comments:

  1. बेहतरीन अंक..
    साधुवाद...
    सादर..

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  2. श्वेता जी
    आपने पढ़ा, पसंद किया, चुना।
    आभार।

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  3. उम्दा प्रस्तुति।

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  4. सुन्दर सार्थक रचनाओं से सज्जित नायाब संकलन..

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  5. अति सुन्दर संकलन बासंतिक खुशबू लिए हुए । हार्दिक आभार ।

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  6. सभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ मुखरित मौन, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार - - नमन सह।

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