Monday, July 20, 2020

421 ..हनुमान है, कलियुग में है, सिद्ध होने लगा है...

सादर वन्दन
सोमवार भी है
अमावस्या भी है
किसान लोक पर्व हरेली पर 
आज खेती-किसानी में काम 
आने वाले उपकरण और बैलों की पूजा करेंगे। 
इस दौरान सभी घरों में पकवान भी बनेंगे। 
इस दिन कुलदेवता की भी पूजा करने की परंपरा है।

अब चलिए रचनावलोकन करें...

बन कजरारे मेघ वो, उमड़े चारों ओर ।
रिमझिम बरसीं टूट कर अँखियाँ दोनों छोर ।

घिरी घटा घनघोर सी यादों के आकाश ।
बिजली सा कौंधे कहीं अन्तर का संत्रास ।


ग्यारवीं के इश्क़ की क्या कहूँ, 
लाजवाब था वो भी जमाना, 
इसके बादशाह थे हम लेकिन, 
रानी का दिल था शायद अनजाना। 

सुबह आते थे क्लासरूम में, 
हसरत थी पास बैठने की, 
पर वो मोटा भी क्या अजीब था, 
दो पन्ने पढ़कर, पास उसके बैठ जाता था। 



तुम्हारी सोच की हदों से वाकिफ है
तुम क्या बयाँ करोगे, कायनात है हम

रहने भी दो यारो क्यूँ हाथ जलना जलाना
हुस्न और इश्क़ का याराना है पुराना

नव परिचय
ये सुहाना मौसम जैसे कोई साजिश किये जा रही हैं
किसी की यादों में भीगाने ,की तैयरी किये जा रही है

ये हवाएं जो चल रही है , मद होश सी कर रही है
खुशबू सी लिए हुए ,फिजाओं को  महका रही है

फिर से दिखाई देने लगा है
बिना सोये
दिन के तारों के साथ
आक्स्फोर्ड कैम्ब्रिज मैसाच्यूट्स बनता हुआ
एक पुराना खण्डहर तीसरी बार
मोतियाबिंद पड़ी सोच के उसी आदमी को
....
निम्न पंक्ति के साथ विदा लेती ..दिव्या
सुख-दुःख, सर्दी-गर्मी के समान है
मौसम की तरह इन्हें सहना सीखें

सादर


5 comments:

  1. व्वाह दिबू व्वाहहहह..
    शानदार प्रस्तुति...
    साधुवाद...
    सादर..

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  2. बहुत बहुत आभार दिव्या जी, मेरी रचना को शामिल करने के लिए।
    आप यूं ही सानिध्य बनाये रखें।

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  3. सावन का शुभारंभ ! भोलेनाथ सब पर कृपा बनाए रखें

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  4. बेहद सुन्दर प्रस्तुति

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