Thursday, July 9, 2020

410 .."मैं इसी स्थिति में आपसे अधिक सुखी हूँ।"

चार दोस्त,
दो साईकल,
खाली जेब
और पूरा शहर!!

ज़नाब, हमारा एक खूबसूरत दौर
ये भी था ज़िन्दगी का,

चार सौ दसवां अक है ये
चार सौ बीसवाँ किसके हिस्से में आता है
यह एक प्रश्न है..


हम हैं, हम रहेंगे ...स्मृतिशेष अटल बिहारी वाजपेयी

शायद यह प्रश्न, प्रश्न ही रहेगा।
यदि कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहें
तो इसमें बुराई क्या है?
हाँ, खोज का सिलसिला न रुके,
धर्म की अनुभूति,
विज्ञान का अनुसंधान,
एक दिन, अवश्य ही
रुद्ध द्वार खोलेगा।
प्रश्न पूछने के बजाय
यक्ष स्वयं उत्तर बोलेगा।

मेरी पत्नी करवाचौथ का व्रत नहीं रखती ..कमल उपाध्याय

वैसे तो मैं अपनी जिंदगी से खुश हूँ 
क्योंकि मेरी लेखकी से तो 
घर का खर्चा चल नहीं सकता तो 
धर्मपत्नी जी अपनी अध्यापिका जीवन से 
घर का खर्च चला देती हैं।


सुख ...व्याकुल पथिक

मछुआरा बुद्धिमान था, 
उसे ज्ञात था कि 
उसकी खुशी किसमें है। 
इसीलिए उसने बड़ी दृढ़ता के साथ 
उद्योगपति श्री बजाज को जवाब दिया था - 
"मैं इसी स्थिति में आपसे अधिक सुखी हूँ।"


माँ ....आशा ढौंडियाल

माँ वाक़िफ़ है रग रग से 
समझती है हर कारगुज़ारी
वो भोली, नादान नहीं होती
जितना तुम समझते हो,
उतनीअनजान नहीं होती। 


बीमारी के रोना ..महेन्द्र देवांगन "माटी

बीमारी के सब रोना हे।
आ गे अब कोरोना हे।

मुहूँ कान ला बाँधे राहव।
बार बार अब धोना हे।।
...
इति शुभम्
सादर





4 comments:

  1. इन सुंदर रचनाओं और प्रस्तुति के मध्य पटल पर मेरे लेख "सुख"को स्थान देने के लिए आपका अत्यंत आभार भाई साहब।
    सत्य यही है कि सुख का एक द्वार जब बंद होता है, तो दूसरा खुल जाता है। जीवन की इस पाठशाला से यह सबक़ मैंने भी सीखा है।

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  2. बढ़िया..
    आ जाया करिए
    कभी-कभार..
    सादर..

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  3. वाह!खूबसूरत प्रस्तुति ।

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  4. सभी की रचनाएँ बहुत अच्छी है ।
    सभी को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ ।

    मेरी रचना "बीमारी के रोना " को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ।

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