Monday, September 23, 2019

123...सिंधुतट की बालुका पर जब लिखा मैने तुम्हारा नाम.....

स्नेहाभिवादन !
'सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में  आप सभी रचनाकारों और पाठकों का हार्दिक स्वागत !
कल का दिन ब्लॉग जगत और
फेसबुक पर बेटियों को समर्पित था ।
अच्छा लगा बेटियों तक संदेश पहुँच रहा है कि असीम स्नेह और सम्मान पर उनका मौलिक हक है ।
आज स्मृति शेष श्री रामधारी सिंह "दिनकर" जी
का जन्म दिवस है
शुरुआत करते हैं आज की प्रस्तुति की
उन्हीं के कवितांश से--

'सिंधुतट की बालुका पर जब लिखा मैने तुम्हारा नाम
याद है, तुम हंस पड़ीं थीं, 'क्या तमाशा है
लिख रहे हो इस तरह तन्मय
कि जैसे लिख रहे होओ शिला पर।
मानती हूं, यह मधुर अंकन अमरता पा सकेगा।
वायु की क्या बात? इसको सिंधु भी न मिटा सकेगा।'

"सीपी और शंख"
★★★


जहाँ हो बात इंसानियत की
मोहब्बत का एहतराम करते हैं
इंसान को इंसान समझकर
नेकियों के सजदे सरेआम करते हैं

मज़हबी दड़बों से बाहर झाँककर
 मनुष्यता की पोथी,किताब बाँचकर
धर्म के नाम पर ढ़ोंग लाख़ करते हैं
काफ़िर कहलाने से हम भी डरते हैं
ठठरी लाशों संग बैठकर दो-चार पल
दीनों के सजदे सुबह-शाम करते हैं

बेटियां, पथरीले रास्तों की दुर्वा

रतनार क्षितिज का एक मनभावन छोर
उतर आया हो जैसे धीरे-धीरे क्षिति के कोर ।

जब चपल सी बेटियां उड़ती घर आंगन
अपने रंगीन परों से तितलियों समान ।

बहुत दिनों से सोचा मैं कुछ नया लिखूँ
पर क्या लिखूँ वही ज़िंदगी के झमेले
लाखों की भीड़ है पर इंसान अकेले
अपने-आप में मुस्कुराते खुद ही बतियाते
अगर वजह पूछ ली इसकी तो आँखे दिखाते

हाँ
मैं प्रवासी हूँ
शायद इसी लिए
जानता हूँ
कि मेरे देश की
माटी में
उगते हैं रिश्ते
*
बढ़ते हैं
प्यार की धूप में
जिन्हें बाँध कर
हम साथ ले जाते हैं
धरोहर की तरह
और पोसते हैं उनको
कलेजे से लगाकर

क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन विषहीन विनीत सरल हो 

गद्य में भी वे अप्रतिम रहे हैं। उनका गहन अध्ययन और सुगम्भीर चिन्तन गद्य में मार्मिक अभिव्यक्ति पाता है। उनके गद्यों में विषयों की विविधता और शैली की प्रांजलता के सर्वत्र दर्शन होते हैं। उनका गद्य साहित्य काव्य की भांति ही अत्यंत सजीव और स्फ़ूर्तिमय है तथा भाषा ओज से ओत-प्रोत। उन्होंने अनेकों अनमोल ग्रंथ लिखकर हिन्दी साहित्य की वृद्धि की। साहित्य अकादमी से पुरस्कृत ‘संस्कृति के चार अध्याय’ एक महान ग्रंथ है। इसमें उनकी गहन गवेषणा, सूक्ष्म अन्वेषण, भारतीय संस्कृति से उद्दाम प्रेम प्रकट हुआ है।

                           ★★★★★

इजाजत दें... फिर मिलेंगे..
 शुभ संध्या
🙏
"मीना भारद्वाज"










9 comments:

  1. शुभ साँझ दी...🙏
    बेहद सुरुचिपूर्ण पूर्ण. प्रस्तुति बनी है आज की भूमिका से लेकर समापन तक कलात्मकता झलक रही।
    रामधारी सिंह दिनकर को सादर प्रणाम।
    इनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर है।
    सभी रचनाएँ बेहद उम्दा है।
    सुंदर संयोजन में मुझे शामिल करने के लिए हृदय से बहुत आभारी हूँ दी।
    बधाई दी सच में प्रस्तुति बहुत उम्दा बनी है।

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  2. बेहतरीन प्रस्तुति...
    आभार..
    सादर..

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  3. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई

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  4. जला अस्थियाँ बारी-बारी
    चिटकाई जिनमें चिंगारी,
    जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
    लिए बिना गर्दन का मोल
    कलम, आज उनकी जय बोल...


    सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रेरणास्रोत राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर जी की जन्मजयंती पर उन्हें नमन करते हुये वीररस से भरी उनकी रचना की ये पक्तियाँ याद हो आई। वैसे तो मैंने उनकी कविताओं को बहुत कम ही पढ़ा है। परंतु विभिन्न कार्यक्रमों में मंच से इन पंक्तियों के माध्यम से हम कलमकारों को जगाया जाता है।
    लेकिन सच तो यह है कि इस अर्थयुग में यह कलम अब अपनी नहीं रही... ?
    तो क्या संकल्प लूँ ,इस महाकवि की जयंती पर ?
    मीना दी सदैव की तरह आपकी प्रस्तुति श्रेष्ठ और सुंदर रहती है। प्रणाम..।

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  5. अनुपम भुमिका, कालजई साहित्य सृजक दिनकरजी की सुंदर पंक्तियां मन लुभा गई।
    शानदार सांध्य दैनिक में अपनी रचना देख मन अभिभूत सुधा मीना जी बहुत बहुत आभार आपका।
    सभी रचनाएं बहुत सुंदर ।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति मेरी रचना को सांध्य दैनिक में स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार मीना जी

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  8. अनुपम प्रस्तुति

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