Tuesday, September 17, 2019

117 अपनी गाय, अपना गोबर, अपने कंडे, खुद ही ढोकर जला

सादर अभिवादन..
सर्व प्रथम राष्ट्र-शिल्पी 


प्रधान मंत्री  नरेन्द्र दामोदर मोदी जी को 

उनके जन्मदिवस पर शुभकामनाएँ

अब चलें रचनाओँ की ओर..

कविता..!! ...प्रभात सिंह राणा

मैं शुष्क चिरागों की भाँति,
वह मधुवन वृक्ष की छाया-सी।
मैं ठोस-कठोर हूँ हाड़ सदृश,
वह निर्मल-कोमल काया-सी॥

वह पौ फटते यादों में आती,
मैं न आता शाम तलक।
वह गद्य रूप छा जाती मन में,
न लेती पर नाम तलक॥

उपहार ....श्वेता सिन्हा

अपनी धुरी में घूमते 
आकाशगंगा में
मेरे मन वाले ग्रह के 
बहुत पास से
तुम्हारा गुजरना,
एक संजोगभर होगा
तुम्हारे लिये
नक्षत्रों का दोषभर...
पर,
तुम्हारी छाया का
मेरे वजूद को पूर्णतया ढक लेना

ये सजदा रवा क्यूँ कर ..... जमील मज़हरी

ग़ौर तो कीजे के ये सजदा रवा क्यूँ कर हुआ
उस ने जब कुछ हम से माँगा तो ख़ुदा क्यूँ कर हुआ

ऐ निगाह-ए-शौक़ इस चश्म-ए-फ़ुसूँ-परदाज़ में
वो जो इक पिंदार था आख़िर हया क्यूँ कर हुआ

चन्द पंक्तियाँ ..सुबोध सिन्हा

अपनापन की नमी से
भींगा हुआ मेरा मन
मेरे ही तन से दूर .... ठीक ...
चाय में अनायास घुले
आधे गीले और ...
हाथ में बचे आधे बिस्कुट-सा


उलूक के पन्ने से

बेवकूफ 
‘उलूक’

थोड़ा सा 
कुछ 
अब 
तो सीख 

अपनी गाय 
अपना गोबर 
अपने कंडे
अपनी दीवार
अपनी आग 
अपनी राख 
अपने अपने
राग बे राग 
अपने कंडे
खुद ही थाप 
रोज सुखा
जला कुछ आग। 

अब बस
आज्ञा
यशोदा















7 comments:

  1. बहुत-बहुत आभार मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए। अन्य रचनाएँ भी बहुत सुंदर हैं। परंतु मेरा नाम किसी कारणवश गलत अंकित हो गया है। कृपया सुधार करने का कष्ट कर लीजिए।
    धन्यवाद!

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    1. ओह..
      हम सुधार देंगे..
      सादर..

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  2. अपनी आग
    अपना जलना
    अपनी फाग
    अपने राग
    अपने साग..
    बहुत सही कहा..
    सुंदर अंक प्रणाम।

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  3. राष्ट्र शिल्पी प्रधानमंत्री को अशेष शुभकामनाएँ...
    अच्छी प्रस्तुति..
    सादर..

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। आभार यशोदा जी।

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति दीदीजी नमस्ते।

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  6. एक अति मनमोहक संकलन के साथ मेरी रचना को साझा करने के लिए आपका हार्दिक आभार यशोदा जी ...

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