Thursday, September 12, 2019

112... चिर सजग आँखें उनींदी जाग तुझको दूर जाना....

स्नेहाभिवादन !
आज की सांध्य दैनिक प्रस्तुति में  सभी रचनाकारों और पाठकों का हार्दिक स्वागत !

"सूरज ने क्‍यों बंद कर लिया,
अपने घर का दरवाजा़
उसकी माँ ने भी क्‍या उसको,
बुला लिया कहकर आजा।"

स्मृति शेष महादेवी जी की प्रिय सखी सुभद्रा कुमारी चौहान जी की बालक सी इठलाती
इन चंचल पंक्तियों के साथ  पढ़ते आज की रचनाओं के सूत्र--

गहराती हुई शाम है,
घनी पसरी हुई एक खामोशी,
दूर कहीं बजती हुई बंसी के स्वर में
आहिस्ता-आहिस्ता पलाश के फूल
फूट रहे हैं ...
और असंख्य तारों को कतारबद्ध
गिनते हुए बैठे हैं हम दोनों।

महादेवी वर्मा स्वयं अपने गीतों के बारे में कहती हैं कि उनके गीत किसी पक्षी के समान हैं।
जिस प्रकार एक पंक्षी आकाश में उड़ान भरता है लेकिन फिर भी धरती है जुड़ा रहता है
उसी प्रकार कवि भी कल्पना के आकाश में उड़ता है लेकिन वह सदैव धरती से जुड़ा रहता है।
वह आसमान में जाकर भी धरती पर लौट कर आता है--
चिर सजग आँखे उनींदी चिर सजग आँखे उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना! जाग तुझको दूर जाना!

ढूँढ़ रही आजू-बाजू दे साथ सदा रहमान
क्रांति की परिभाषा रहे पहले सा सम्मान
सबके कथन से नहीं हो रही सहमती मेरी
आस रहे तमिल-हिन्दी एक-दूजे का मान

दूर क्षितिज पर भुवन भास्कर सागर की लोल लहरियों में जलसमाधि लेने के लिये अपना स्थान सुनिश्चित
कर संसार को अंतिम अभिवादन करते विदा होने को तत्पर हैं ! सूर्यास्त के साथ ही अन्धकार त्वरित
गति से अपना साम्राज्य विस्तृत करता जाता है ! जलनिधि की चंचल तरंगों के साथ अठखेलियाँ करती
अवसान को उन्मुख रवि रश्मियों का सुनहरा, रुपहला, रक्तिम आवर्तन-प्रत्यावर्तन हृदय को स्पंदित कर गया है !

ये खामोशी पंजों में दबोचे जीवन
सोखती जाती है जीवन के रस
तन्हाई और अकेलेपन बनते साथी
पसर जाती है भीतर-बाहर खामोशी।
देती है आने वाले तूफानों का संदेशा,
जिसका किसी को कहां होता अंदेशा।

★★★★★
 शुभ संध्या
🙏
"मीना भारद्वाज"













8 comments:

  1. व्वाहहहहह
    बेहतरीन प्रस्तुति
    सादर

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  2. शानदार प्रस्तुतीकरण
    सस्नेहाशीष संग हार्दिक आभार बहना

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  3. ये खामोशी पंजों में दबोचे जीवन
    सोखती जाती है जीवन के रस
    तन्हाई और अकेलेपन बनते साथी
    पसर जाती है भीतर-बाहर खामोशी।...
    वेदना एवं रूदन के बाद ख़ामोशी कभी- कभी विरक्ति भी दे जाती है। जीवन के यथार्थ को इंसान समझ पाता है।
    सादर..।

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    1. विरक्त होना सामान्य मनुष्य के लिए संभव नहीं
      आदरणीय,जीवन के यथार्थ को सामान्य मनुष्य
      यदि समझ लेते तो इतने पीड़ित न होते

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  4. बहुत ही सुन्दर रचनाओं का संकलन आज की पत्रिका में ! मेरी प्रस्तुति को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! आज की शीर्षक पंक्ति मन को आंदोलित कर गयी ! सन १९६४ में अपने स्कूल में हायर सेकेंडरी की फेयरवेल पार्टी में मुझे यही पंक्ति टाइटिल स्वरुप दी गयी थी ! 'चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना ! जाग तुझको दूर जाना !'

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  5. बहुत सुंदर रचनाओं का बेहद सराहनीय संकलन है दी।
    सुरुचिपूर्ण बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  6. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार

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  7. शानदार अद्भुत प्रस्तुति ,महादेवी वर्मा जी को नमन ,सभी का तहे दिल से आभार

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