सादर अभिवादन
कल श्री गणेश जी की बिदाई है
भरे मन से उन्हें विदा करेंगें
पंडाल सारे खाली दिखेंगे
खैर...आना-जाना तो लगा रहता है
मन में श्रीगणेश हरदम रहते हैं
चलिए चलें रचनाओँ की ओर...
छलावा ...अनुराधा चौहान
रिश्तों का बंधन रिक्त हो रहा,
सिर्फ दिखावा सिर उठाए चलता है।
सच्चाई से मुँह मोड़कर इंसान,
चादर झूठ की ओढ़े फिरता है।
किसी की बात न सुनना "अनु" तुम,
यहाँ हर कोई छलावा-सा दिखता है।
दिल्ली वाले दिल हार आए ...सुनीता शानू.
कालों के काल महाकाल की नगरी उज्जैन जाने का अवसर मिला। यूं तो ज्ज्जैन के कई नाम हैं मुख्यरूप से उज्जैन को उज्जयिनी के नाम से पुकारते हैं। उज्जैन आज भी भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को बचाए हुए हैं, यहाँ लगने वाला कुम्भ का मेला जग प्रसिध्द है। इसे सिंहस्थ महापर्व के नाम से जाना जाता है। उज्जैन नगरी को अच्छी तरह से देखने समझने के लिए एक महीना भी कम है,
यह कैसी खामोशी ...साधना वैद
साँझ के उतरने के साथ ही मेरी यह नि:संगता और अँधेरा बढ़ता जाता है और हर पल सारी दुनिया से काट कर मुझे और अकेला करता जाता है ! आने वाले हर लम्हे के साथ यह मौन और गहराता जाता है और मैं अपने मन की गहराइयों में नीचे और नीचे उतरती ही जाती हूँ !
बहते हुये ज़ज़्बात हैं ...श्वेता सिन्हा
लब थरथरा के रह गये
नज़रों की मुलाकात है
साँसों की ये सरगोशियाँ
नज़रों की ही सौगात है
रोया है कोई ज़ार-ज़ार
बिन अभ्र ही बरसात है
रुठा हमसफर ...आनन्द शेखावत
यूँ न रूठा करो हमसे,
हमे तो मनाना भी नही आता।
यूँ न उलझा करो,
हमे सुलझाना भी नही आता।
एक तेरे प्यार की थपकी ,
से ही तो आया है ये गुरूर।
इस गुरूर को न तोड़ो,
फिर वापस बनाना भी हमे नही आता।
चलते चलते एक रचना और..
उलूक टाईम्स से
‘उलूक’
को
पता होता है
अंधेरी
रात में
खुद
के डर
मिटाने को
जागते रहो
जागते रहो
का
जाग
लिखता है ।
...आज के लिए बस
यशोदा
कल श्री गणेश जी की बिदाई है
भरे मन से उन्हें विदा करेंगें
पंडाल सारे खाली दिखेंगे
खैर...आना-जाना तो लगा रहता है
मन में श्रीगणेश हरदम रहते हैं
चलिए चलें रचनाओँ की ओर...
छलावा ...अनुराधा चौहान
रिश्तों का बंधन रिक्त हो रहा,
सिर्फ दिखावा सिर उठाए चलता है।
सच्चाई से मुँह मोड़कर इंसान,
चादर झूठ की ओढ़े फिरता है।
किसी की बात न सुनना "अनु" तुम,
यहाँ हर कोई छलावा-सा दिखता है।
दिल्ली वाले दिल हार आए ...सुनीता शानू.
कालों के काल महाकाल की नगरी उज्जैन जाने का अवसर मिला। यूं तो ज्ज्जैन के कई नाम हैं मुख्यरूप से उज्जैन को उज्जयिनी के नाम से पुकारते हैं। उज्जैन आज भी भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को बचाए हुए हैं, यहाँ लगने वाला कुम्भ का मेला जग प्रसिध्द है। इसे सिंहस्थ महापर्व के नाम से जाना जाता है। उज्जैन नगरी को अच्छी तरह से देखने समझने के लिए एक महीना भी कम है,
यह कैसी खामोशी ...साधना वैद
साँझ के उतरने के साथ ही मेरी यह नि:संगता और अँधेरा बढ़ता जाता है और हर पल सारी दुनिया से काट कर मुझे और अकेला करता जाता है ! आने वाले हर लम्हे के साथ यह मौन और गहराता जाता है और मैं अपने मन की गहराइयों में नीचे और नीचे उतरती ही जाती हूँ !
बहते हुये ज़ज़्बात हैं ...श्वेता सिन्हा
लब थरथरा के रह गये
नज़रों की मुलाकात है
साँसों की ये सरगोशियाँ
नज़रों की ही सौगात है
रोया है कोई ज़ार-ज़ार
बिन अभ्र ही बरसात है
रुठा हमसफर ...आनन्द शेखावत
यूँ न रूठा करो हमसे,
हमे तो मनाना भी नही आता।
यूँ न उलझा करो,
हमे सुलझाना भी नही आता।
एक तेरे प्यार की थपकी ,
से ही तो आया है ये गुरूर।
इस गुरूर को न तोड़ो,
फिर वापस बनाना भी हमे नही आता।
चलते चलते एक रचना और..
उलूक टाईम्स से
‘उलूक’
को
पता होता है
अंधेरी
रात में
खुद
के डर
मिटाने को
जागते रहो
जागते रहो
का
जाग
लिखता है ।
...आज के लिए बस
यशोदा
जागते रहो- जागते रहो..
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति यशोदा दी।
प्रणाम।
बेहतरीन प्रस्तुति यशोदा जी।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति। आभार यशोदा जी।
ReplyDeleteसुंदर सांध्य दैनिक, एक ही जगह आकर मनभावन रचनाएं मिलना बहुत आनंद दायक है।
ReplyDeleteआभार यशोदा जी ।
सादर ।
वाह ! सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज का मुखरित मौन ! मेरी प्रस्तुति को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वंदे !
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर संकलन।मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार यशोदा जी
ReplyDeleteगणपति सदा विघ्न विनाशक के रूप में हमारे साथ रहें..सुंदर रचनाओं का संयोजन !
ReplyDeletethanks gym motivaional quotes
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