निकल पड़ा है कारवाँ
मुखरित मौन का...
अब शायद ही रुके..
सादर अभिवादन....
चलिए चले ताजा-तरीन रचनाओं की ओर.....
मुखरित मौन का...
अब शायद ही रुके..
सादर अभिवादन....
चलिए चले ताजा-तरीन रचनाओं की ओर.....
''जो सुख छज्जू दे चौबारे,
वो बल्ख ना बुखारे।''
यह छज्जू कौन है जिसके चौबारे का जिक्र इस कहावत में किया गया है! ऐसा ही समझा जाता रहा है कि बात को समझाने के लिए एक काल्पनिक नाम जोड़ दिया गया होगा। जबकि यह कोई काल्पनिक नाम नहीं है ! तक़रीबन साढ़े चार सौ साल पहले लाहौर में एक सज्जन रहा करते थे जिनका नाम छज्जू भगत था। कहीं-कहीं उनका नाम छज्जू भाटिया भी मिलता है। वे सर्राफे के एक नेक, सहृदय, दानशील व परोपकारी व्यापारी थे। उन्होंने ही लाहौर के अनारकली बाज़ार के इलाके में एक खूबसूरत व भव्य चौबारा बनवाया था।
अहसास को जब बुनना शुरू किया
तब नही मालूम था
कि एकदिन यह प्यार का चादर हो जायेगा
जिसे ओढ़कर सारी उम्र काटनी होगी
ज़ेहन में है
प्रियतम सागर
भुज बन्धन में
तट के किन्तु रहती,
लगन मिलन की
ले कर अंतर्मन
प्यासी नदिया बहती,
मैला ये तन ही क्यूं?
शायद!
ये अभिमानी मन भी हो!
वहम है या इक भ्रम है, हर इक मन,
है श्रेष्ठ वही इक, बाकि सारे हैं धूल-कण,
भूला है, शायद इस भूल-भुलावे में,
ये अभिमानी मन!
माटी के पुतले हम,
नीलाम्बर सा
नभ का चंदोबा,
पतंगों सी झिलमिलातीं
पताकाएं बावरी झूमती,
पीताम्बर सी फहरातीं ..
कीर्तन करती हुई
आनंद उत्सव मनातीं
वंदना की वंदनवार।
ह्रदय को आभास करातीं
भक्ति की आभा का ।
....
आज बस
आज्ञा दें
यशोदा
आज बस
आज्ञा दें
यशोदा
व्वाहहहह...
ReplyDeleteबेहतरीन चयन..
सादर...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌👌
ReplyDeleteसादर
बेहतरीन सूत्रों से सजी बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ।
ReplyDeleteवाह सुन्दर।
ReplyDeleteअति सुंदर
ReplyDeleteकैसे कर लेती हैं...
हार्दिक आभार यशोदा जी.
ReplyDeleteछज्जू के चौबारे ..
रंग-रंग के नज़ारे !
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌👌👌
ReplyDeleteबल्ख और बुखारे वाली प्रस्तुति बिल्कुल ही नयी लगी। पहली बार पढ़ पाया हूँ इसे।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति में मेरी रचना को भी स्थान देने हेतु आभारी हूँ ।
हार्दिक आभार
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