स्नेहाभिवादन !
आज की सांध्य प्रस्तुति पूरी तरह काव्यात्मक..
मन के कोमल भावों की अभिव्यक्ति से सुसज्जित चन्द
रचनाएँ जिनमें चिन्तन-मनन का अनूठा सामंजस्य है----
कुछ
लेखक होते हैं बुरा भी नहीं है
कुछ
लेखक पैदा
नहीं होते है
माहौल
बना देता है
इक दौड़ था, इन धड़कनों में, जब शोर था,
गूँजती थी, दिल की बातें,
जगाती थी, वो कितनी ही रातें,
अब है गुमसुम सा, वो खुद बेचारा!
है वक्त का, ये खेल सारा,
बेरहम, वक्त के, पाश में जकड़ा,
भाव-शून्य है, बिन भावनाओं में डोले!
वर्षों हुए थे, इस दिल को टटोले.....
उमड़-घुमड़ कर छाए बादल,
गरज-गरज के छाए बादल।
नवजीवन के सृजनकर्ता,
झूम-झूम के बरसो बादल।
कृषकों के दिल हर्षाए बादल,
राग-मल्हार गाए बादल,
क्रांति का गीत सुनाने वाले,
गरज-गरज के बरसो बादल।
मेरे तपते जीवन पर थी माँ तुम हुलसित छाया
सूरज को नित आँख दिखाती गुलमोहर की माया
पाँव पड़े थे छाले मेरे या डगमग पग डोले
बिन बोले भी भाव समझकर भेद जिया के खोले
जो संवेदनाएं नहीं होती
पत्थरों में
चिंगारी नहीं फूटी होती
इनके घर्षण से
न ही जन्म लेती आग।
जो संवेदनाएं नहीं होतीं
पत्थरों में
कहाँ पिसी होती गेंहूं
पकी होती रोटी
पत्थरों ने
अपनी साँसे रोक कर
सहा जो नहीं होता
छेनियों की धार
और हथौरों की चोट
गढ़े नहीं गए होते बुद्ध
*******
इजाजत दें ...शुभ संध्या 🙏
मीना भारद्वाज
शुभ संध्या...
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाओं का संगम...
साधुवाद...
सादर...
बहुत शानदार प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बधाई ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर संकलन सजाया है प्रिय सखी
ReplyDeleteसादर
सुन्दर साँध्य प्रस्तुति। आभार मीना जी 'उलूक' की बकबक पर नजरे इनायत के लिये।
ReplyDeleteमनमोहक प्रस्तुतीकरण
ReplyDeleteबहुत सुंदर सुरुचिपूर्ण रचनाओं का सराहनीय संकलन है मीना दी..बधाई और शुभकानाएँ सुगढ़ प्रस्तुति अए लिए।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteमेरी रचना से ली गई शीर्षक.... आह्लादित कर गई मुझे । स्नेह सहित अभिवादन ।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteसभी को गुरु पर्व की शुभकामनाएं
ReplyDelete