दिन ढले
धोरे की ढलान ढलता
गडरिया,
फोगों बीच
चरती भेड़ों के गले
बजती घंटियों के सुर।
सचमुच,
यही है-
दुनिया की बेहतरीन कविता।
-- सत्यनारायण सोनी
चलिये बढ़ते है,आज के सङ्कलन की
ओर मेरी प्रथम प्रस्तुति |
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सरस्वती वंदना
पुलकित पल्लव,सुरभित मुकुल,
कुमुद,खग कलरव करत वंदना
सोम,मुकुंदा,शिव,गंग,सविता
पद विमला की करत अर्चना
नृत राग,रागिनी,भू,नभ,उदधि,
कोपल,बाली करे रंजना
हे वाग्देवी हे ज्ञान की सरिता
ब्रह्मपुत्र,
बहुत दिनों बाद मिला हूँ तुमसे,
कुछ सूख से गए हो तुम,
कुछ उदास से लगते हो,
कौन सा ग़म है तुम्हें,
किस बात से परेशान हो?
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हाशिए से उन्वान का सफ़र नहीं आसां,
हर एक मोड़ पर हैं पेंच बेशुमार,
न थाम सीढ़ियों को इतने
सख़्त हाथों से, अपनों
ने ही मुझे गिराया
है कई बार।
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जंगलों की कच्ची गन्ध सहेजते
शिराओं-सी पगडण्डियाँ
मोहक लगती हैं मुझे
पहुँचते हैं पथिक ठौर पर
पगडण्डियाँ नहीं पहुँचतीं
शिराओं-सी पगडण्डियाँ
मोहक लगती हैं मुझे
पहुँचते हैं पथिक ठौर पर
पगडण्डियाँ नहीं पहुँचतीं
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अटक जाती है साँस कभी
कभी जीवन भी अटक जाता है
अटकी हुई बात कोई
घुटन हो
कंठ में ही नहीं
रोम-रोम जब रुदन हो
बेहतरीन संकलन बहुत सुन्दर सूत्रों के साथ.. आपकी लेखनी खूब यश प्राप्त करे... हार्दिक शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteमुखरित मौन परिवार में स्वागत है अनु।
ReplyDeleteआज पहली प्रस्तुति है तुम्हारी.. सुगढ़ और सुरुचिपूर्ण।
सभी रचनाएँ बढ़िया है।
मेरी हार्दिक शुभकानाएँ और खूब सारा स्नेह।
व्वाहहहह...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति....
सु-स्वागतम्...
बधाइयाँ...
आभार...
सादर....
वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteपहली प्रस्तुति लाजवाब
बधाइयाँ
सादर नमस्ते
वाह लाज़बाब प्रस्तुति
ReplyDeleteवाहः
ReplyDeleteबहुत बढ़ियाँ प्रस्तुति
प्रिय अनीता मुखरित मौन में तुम्हारी पहली प्रस्तुति पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई। इस मंच पर भी तुम अपनी प्रतिभा का उत्कृष्ट प्र दर्शन करोगी ऐसा मेरा विशवास है। 🌹🌹💐💐🌹
ReplyDeleteसुंदर संयोजन!
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
आभार!
तहे दिल से आभार,अपार स्नेह और सम्मान के लिए, आप का स्नेह और सानिध्य हमेशा ऐसे ही बना रहे
ReplyDeleteप्रणाम
सादर