स्नेहिल अभिवादन
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आज की शाम मुंशी प्रेमचंद के नाम
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मुंशी प्रेमचंद (धनपत राय श्रीवास्तव) जैसे साहित्यकार पाकर
भारत माँ गर्वित महसूस करती है।
कालजयी क़लम के सिपाही का यथार्थवादी लेखन उन्हें
जनमन का नायक बनाता है।
जन के मर्म को स्पर्श करने वाले रचनाकार
प्रेमचंद को पहला हिंदी लेखक माना जाता है
जिनके लेखन में समाज का सच प्रमुखता से था।
उनके उपन्यासों में गरीबों और शहरी मध्यवर्ग की
समस्याओं का वर्णन है।
उनके काम एक तर्कसंगत दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जिसके
मुताबिक धार्मिक मूल्य शक्तिशाली लोगों को
कमजोर लोगों का शोषण करने की अनुमति देता है।
उन्होंने राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों के बारे में सार्वजनिक
जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से साहित्य का इस्तेमाल किया
और अक्सर भ्रष्टाचार, बाल विधवा, वेश्यावृत्ति, सामंती व्यवस्था,
गरीबी, उपनिवेशवाद और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन
से संबंधित विषयों के बारे में लिखा
क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात नहीं
कहता, वह केवल दूसरों का दिल दुखाना चाहता है।" ~ मुंशी प्रेमचंद
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मनुष्य कितना ही हृदयहीन हो, उसके ह्रदय के किसी न किसी कोने में पराग की भांति रस छिपा रहता है| जिस तरह पत्थर में आग छिपी रहती है, उसी तरह मनुष्य के ह्रदय में भी ~चाहे वह कितना ही क्रूर क्यों न हो, उत्कृष्ट और कोमल भाव छिपे रहते हैं|" ~ मुंशी प्रेमचंद
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आदरणीय रुपचंद्र शास्त्री 'मयंक'
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आदरणीय रुपचंद्र शास्त्री 'मयंक'
जीवित छप्पन वर्ष तक, रहे जगत में मात्र।
लेकिन उनके साथ सब, अमर हो गये पात्र।।
फाकेमस्ती में जिया, जीवन को भरपूर।
उपन्यास सम्राट थे, आडम्बर से दूर।।
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लेकिन आज हमारे बीच फेसबुक है प्रेमचंद नहीं। फेसबुक के जमाने में प्रेमचंद का न होना कोई बड़ी या गंभीर बात नहीं। हम अपने-अपने तरीके से आज प्रेमचंद को फेसबुक पर याद कर तो रहे हैं। आज हर दूसरी वॉल पर प्रेमचंद की याद या कहानी का तंबू गढ़ा है। कोई प्रेमचंद को महान कहानीकार बता रहा है तो कोई प्रेमचंद की लाठी थामकर सेक्युलरवाद पर भाषण झाड़ रहा है। कोई हैशटैग लगाकर प्रेमचंद पर स्टेटस चिपकाए पड़ा है। सबके अपने-अपने प्रेमचंद हैं आज।
हिंदी
अपने शब्दों से वह किसी साधारण वृत्तान्त को भी असाधारण रूप से सुन्दर बना देते थे। कहानी को कागज पर जीवंत कर देने की जो कला उन्हें आती थी, उसमें बहुत ही कम लोगों को महारत हासिल है। दहेज, छुआछूत, बाल विवाह, गरीबी, जाति व्यवस्था, जमींदारी, भ्रष्टाचार और ऐसे ही अनेक सामाजिक मुद्दों पर कठोराघात करते हुए उन्होंने सामजिक चेतना बढ़ाने में भी पूरा योगदान दिया।
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क़लम का सिपाही...गोपेश मोहन जैसवाल
होरी के लाखों पुनर्मरण पर, एक नया गोदान लिखो.
प्रेमचंद के सुपुत्र श्री अमृत राय ने ‘कलम का सिपाही’ लिखकर हिंदी-उर्दू भाषियों के साहित्य प्रेम पर एक ज़ोरदार तमाचा जड़ा है. गांधीजी के आवाहन पर शिक्षा विभाग की अपनी अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर हमारा कथा सम्राट असहयोग आन्दोलन में भाग लेता है और हमेशा-हमेशा के लिए गरीबी उसका दामन थाम लेती है. उसके बिना कलफ और बिना इस्तरी किये हुए गाढ़े के कुरते के अन्दर से उसकी फटी बनियान झांकती रहती है. उसकी पैर की तकलीफ को देखकर डॉक्टर उसे नर्म चमड़े वाला फ्लेक्स का जूता पहनने को को कहता है पर उसके पास उन्हें खरीदने के लिए सात रुपये नहीं हैं. वो अपने प्रकाशक को एक ख़त लिखा..
अगर आपके पास थोडा भी हृदय है तो क्या मजाल की मुंशी जी की कृतियां आपकी आंखे ना भिगो पाये, जीवन के विविध रूपों के हर पहलूओं पर उन्होंने जो चित्र उकेरे हैं वो विलक्षण है ।
-श्वेता सिन्हा
सादर नमन..
ReplyDeleteस्मृतिशेष मुंशी जी को..
बेहतरीन विशेषांक..
सादर...
असाधारण भुमिका ।
ReplyDeleteसुंदर अंक संयोजन सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरे साधारण लेख को शामिल करने हेतु हृदय तल से आभार।
वाह लाजवाब अंक।
ReplyDeleteसुंदर संकलन बेहतरीन रचनाएं
ReplyDeleteअपूर्व ! धन्यवाद. आज के दिन मुंशी प्रेमचंद के बारे में ही खोज - खोज कर पढ़ने का मन था. सो आपने मन की मुराद पूरी कर दी !
ReplyDeleteमनुष्य कितना ही हृदयहीन हो, उसके ह्रदय के किसी न किसी कोने में पराग की भांति रस छिपा रहता है| जिस तरह पत्थर में आग छिपी रहती है, उसी तरह मनुष्य के ह्रदय में भी ~चाहे वह कितना ही क्रूर क्यों न हो, उत्कृष्ट और कोमल भाव छिपे रहते हैं|" ~ मुंशी प्रेमचंद
इस पराग को मन की परतें हटा कर ढूंढ पाना ही तो मुंशी प्रेमचंद का साहित्य सिखाता है.
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ReplyDeleteआज के अंक के लिए साधुवाद ! पर क्षमा चाहता हूँ, पर कुछ रचनाएं देख यही लगता है कि कुछेक लोगों की कुंठा कहीं भी, कभी भी बाहर आ बिखरने से बाज नहीं आती :-(
ReplyDeleteअति उत्तम।
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