Tuesday, July 30, 2019

68...मृगतृष्णा सा सारा जीवन....

स्नेहाभिवादन !
आज के "सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में कुछ चयनित
 सूत्र मेरी तरफ से…
प्रस्तुति की शुरुआत में पढ़िये
मेरी पसन्द की एक कविता....
                   
आज नदी बिल्कुल उदास थी,
सोई थी अपने पानी में,
उसके दर्पण पर
बादल का वस्त्र पड़ा था ।
मैंने उसको नहीं जगाया,
दबे पाँव घर वापस आया ।
"केदारनाथ अग्रवाल"



देर रातों जागकर जो घर-बार सब सँवारती थी,
*बीणा*आते जाग जाती , नींद को दुत्कारती थी ।
शिथिल तन बिसरा सा मन है,नींद उनको भा रही है,
वृद्ध होती माँ अब मन से बचपने में जा रही हैंं ।


लफ़्ज़ों में लरज़िश तुम्हारे लम्स की
रोशनाई में रंग तेरे अबसार का
तुम्हारा ख़त मिला।

मेरे देखे से लकदक हुआ गुलमोहर
खिल उठा रंग गुलाबी कचनार का
तुम्हारा ख़त मिला।


जो भी चाहो सब मिलता है
 माया का जादू चलता है,
फिर भी जीवन उपवन सूना
दिल का फूल कहाँ खिलता है !

रूप रंग है कोमल स्वर भी
थमकर देखें समय कहाँ,
सपनों का इक नीड़ बनाते
नींद खो गयी चैन गया !

मैं देखता हूँ सब कुछ
और मुस्कराता हूँ सोचकर 
के अंजान होने में 
मज़ा कुछ अलग सा ही है
और सोचता हूँ
जो डर है उन्हें
वो मैं क्यों नहीं महसूसता
क्यों मुझे विश्वास है
अपने देश पर
अपनी भाषा पर
अपनी संस्कृति पर
क्यों मानता हूँ मैं
कि किसी के कह भर देने से
न होगा उनका नुक्सान
ये थीं मेरे होने से पहले भी
रहेंगी मेरे होने की बाद भी


सिलवटें ही सिलवटें हैं
ज़िंदगी की चादर पर
कितना भी झाड़ों,फटको
बिछाकर सीधा करो
कहीं न कहीं से कोई 
समस्या आ बैठती
निचोड़ती,सिकोड़ती
ज़िंदगी को झिंझोड़ती है 

*******
अनुमति दें
🙏🙏
मीना भारद्वाज




7 comments:

  1. शुभ संध्या....
    बेहतरीन रचनाओं का चयन..
    आभार..
    सादर...

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति मीना जी सभी लिंक शानदार।

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  3. मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार।

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  4. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सखी,बहतरीन रचनाएँ
    सादर

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार मीना जी

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  6. सुंदर रचनाओं के सूत्र ..आभार मुझे भी शामिल करने के लिए..

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