सादर अभिवादन
कहने को कुछ खास नहीं
कहने को कुछ खास नहीं
11 जुलाई से प्रारम्भ ये सांध्य दैनिक
अब तक ते ठीक ही चल रहा है
आगे भी चलता रहे
माँ सरस्वती से यही विनती है
आज देखिए विविधरंगी प्रस्तुति....
अब तक ते ठीक ही चल रहा है
आगे भी चलता रहे
माँ सरस्वती से यही विनती है
आज देखिए विविधरंगी प्रस्तुति....
यूं ही रहे, एहसासों पर अंकित, कुछ शब्द अनकहे !
एहसासों में पिरोया, लेकिन अध-बुना,
मन में गुंजित, फिर भी अनसुना,
लबों पर अंकित, पर शून्य सा, शब्द बिना!
न हमने कहा, न तुमने सुना
कमरे में तीन ही लोग थे। वो मैं और एक हमारी दोस्त...
तीनों ही मौन थे।
मैं वहां सबसे ज्यादा थी या शायद सबसे कम।
वो वहां सबसे कम था या शायद सबसे ज्यादा।
दोस्त पूरी तरह से वहीं थी।
मैं खिड़की से बाहर देख रही थी।
मेरा घर चार मंजिला इमारत के भूतल पर स्थित है। प्रायः भूतल पर स्थित सरकारी मकानों की स्थिति ऊपरी मंजिलों में रहने वालों के जब-तब घर भर का कूड़ा-करकट फेंकते रहने की आदत के चलते किसी कूड़ेदान से कम नहीं रहती है, फिर भी एक अच्छी बात यह रहती है कि यहां थोड़ी-बहुत मेहनत मशक्कत कर पेड़-पौधे लगाने के लिए जगह निकल आती है, जिससे बागवानी का शौक और पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने का काम एक साथ हो जाता है।
सुन्दर गांव , सुन्दर घर - जहां हमारा बचपन गुजरा। सामने दोनों ओर वर्षा-बहार का पेड़ , उससे नीचे कनेर का पेड़ तो आप देख ही रहे हैं। जैसा कि मुझे याद है , इससे नीचे गेट के बिलकुल नजदीक दोनों ओर उड़हुल का पेड़ भी था। या फोटो बाद का है , तबतक किसी कारणवश पेड़ कट गया होगा। पीछे के बगीचे में तो फल-फूल देनेवाले बहुत सारे पेड़ थे।
वो लहरों का बार-बार
किनारों से टकराना
उनका हुनर है
वे भी जानती हैं
कि उनकी गति पर
असंख्य पहरे हैं
बस इतना ही
समय पर पहरा है
यशोदा
समय पर पहरा है
यशोदा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआप ने शुरु किया है कैसे रुकेगा? आप की लगन को सलाम। सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteशुभ संध्या...
ReplyDeleteहरी-भरी प्रस्तुति..
सादर...
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌,
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर ! यात्रा यूं ही निर्विघ्न चलती रहे
ReplyDeleteमेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु धन्यवाद
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