सादर अभिवादन..
सावन अभी है
दिखा रहा है अपना रंग
सावन अभी है
दिखा रहा है अपना रंग
रोज पानी और रोज पानी
हो रहा है अभिषेक शिव जी का..
चलिए चलें आज प्रकाशित रचनाओं की ओर....
हो रहा है अभिषेक शिव जी का..
चलिए चलें आज प्रकाशित रचनाओं की ओर....
शब्द अधूरे हैं, अल्प सामर्थ्य है शब्दों में. भाव गहरे हैं, अनंत ऊर्जा है भावों में, किंतु गुरू के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी हो तो भाव भी कम पड़ जाते हैं. वहाँ तो मौन ही शेष रहता है. जब उसके हृदय से साधक का हृदय जुड़ जाता है तो मौन में ही संवाद घटता है. गुरू के शब्द और कर्म प्रेम से ही उपजे हैं. वह नित जागृत है,
भीड़ देख अझुरायल हउवा?
भाँग छान बहुरायल हउवा?
बुधिया जरल बीज से घायल
कइसे कही कि सावन आयल!
पुरूब नीला, पच्छुम पीयर
नीम अशोक पीपल भी पीयर
" जमूरे ! तू आज कौन सी पते की बात है बतलाने वाला ...
जिसे नहीं जानता ये मदारीवाला "
" हाँ .. उस्ताद !" ... एक हवेली के मुख्य दरवाज़े के
चौखट पर देख टाँके एक काले घोड़े की नाल
मुझे भी आया है आज एक नायाब ख्याल "
जिसने सीख लिया मनमर्जियां उगाना उसे हर पल सींचना पड़ता है इसे पूरी लगन से, शिद्दत से, सींच रही हूँ जाने कबसे. इन दिनों बारिशें हैं सो थोड़ी राहत है, सींचना नहीं पड़ता खुद-ब खुद-बढ़ रही है मनमर्जियों की बेल. मैं चाहती हूँ यह आसमान तक जा पहुंचे, हर आंगन में उगे. लडकियों के मन के आंगन में तो जरूर उगे.
खड़े होना किसी ना किसी एक भीड़
के सहारे भेड़ के रेवड़ ही सही
‘उलूक’
भेड़ें बकरियाँ
कुत्ते बन्दर गायें
बहुत कुछ सिखाती हैं
किस्मत
फूटे हुऐ लोग
आदमी
गिनते रह जाते हैं
डॉ. साहब ने प्रतिक्रिया का ऑप्शन खत्म कर दिया है
आज की प्रकाशित पठनीय रचनाएँ
आज्ञा दें
यशोदा
यशोदा
उव्वाहहहह....
ReplyDeleteबेहतरीन..
सादर...
वाह!!बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌
ReplyDeleteमेरी रचना को यहाँ टाँक कर मान देने के लिए शुक्रिया आपका!
ReplyDeleteबेहतरीन सूत्रों के साथ सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteपहली बार सांध्य दैनिक मुखरित मौन में सम्मिलित हो रही हूँ, शुभकामनायें और आभार !
ReplyDeleteअमृत रस की सौगात, कायनात द्वारा
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
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