Wednesday, September 15, 2021

762 ..तुम्हारे जैसी बदमाश बहू की नितांत आवश्यकता है

सादर अभिवादन
भाग रहा है सितम्बर
मूसलाधार बरसकर
ठीके है....
आज रचनाएँ अधिक है ....


शाम ढले तलहटी पर थे सभी
चेहरे गहराई तक बोझिल, दूरत्व
रेखा अदृश्य बढ़ती गई,
अंततः सभी मिलन
बिंदु हो गए
ओझल।


सोचता कोई तो होगा, है वहम,
कौन करता है किसी की अब फिकर.
 
था खरीदा, बिक गया तो बिक गया,
क्यों इसे कहने लगे सब अपना घर.
 
मौत की चिंता जो कर लोगे तो क्या,
वक़्त ने करना है तय सबका सफ़र.



 इश्क़ का अब मुझे ख़याल कहां
“मैं कहां और ये वबाल कहां”

 इश्क़ का रोग मत लगाना तुम
हिज्र मिलता है बस विसाल कहां

 बिक गया आदमी का इमां जब
झूठ सच का रहा सवाल कहां



देहरादून के झंडा बाज़ार में बने वर्तमान दरबार साहिब का निर्माण 1707 में संपन्न हुआ था. दरबार साहिब की दीवारों पर कमाल की पुरानी भित्ति चित्रकारी है जो उत्तराखंड में अनूठी है. दरबार साहिब के सामने सौ फुटा झंडा है और यहाँ हर साल होली के पांचवें दिन से झंडा मेला आरम्भ हो जाता है. झंडा साहिब को उतार कर पुराने रुमाल, दुपट्टे उतर दिए जाते हैं और दूध, दही, गंगा जल से धो कर नए रुमाल, दुपट्टे और आवरण बांधे जाते हैं. इसके बाद एक बार फिर से झंडा साहिब को स्थापित कर दिया जाता है. परिसर में गुरु राम राय जी की समाधी के अलावा चार और समाधियां भी हैं जिन्हें माता की समाधियां कहा जाता है.



तू यूँ न कर, जल्दी जाने की जिद,
यूँ चल कहीं, वक्त से परे,
खाली ये पल, चल न, संग भरें,
छिनने लगे, क्यूँ सांझ के मेरे सहारे,
आ रख लूँ, तुझे बांध के!


कितनी आसानी से कह दिया उसने
आखिर क्या किया ,आपने मेरे लिए
जो भी किया,वो तो सब करते हैं
आज अगर मैं कुछ हूं
तो वो है परिणाम,
मेरी मेहनत का
मेरे पुरुषार्थ का
मेरे भाग्य का
या फिर मेरे पुण्य कर्मो का


ससुरजी ने बढ़ते हुए कहा-हां बहू तुमने ठीक कहा। आज समाज को तुम्हारे जैसी बदमाश बहू की नितांत आवश्यकता है। तुमने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाकर और उसका प्रतिकार कर एक सशक्त बहू का फर्ज निभाया है।
तुम्हारे मन में यह हौसला तो है कि ईंट का जवाब पत्थर से देकर दुर्व्यवहार करने वाले को समझाया। वरना बड़ी बहू तो सद्व्यवहार करते-करते थक गई।किसी को इसकी अच्छाइयां समझ नहीं आई।



” आप भी मुआवज़े की माँग किया करो।”
संगीता अपनी समझदारी का तीर तरकस से निकालते हुए कहती है।

”बिटिया रानी के इन काग़ज़ों (टिसु पेपर ) की तरह होती है मुआवज़े की रकम। 'नाम बड़े दर्शन छोटे' किसान के ज़ख़्मों का उपचार नहीं करता कोई, दिलासा बाँटते हैं।

महावीर काका थकान में डूबी आँखों को पोंछते हुए कहते हैं।
एक लंबी ख़ामोशी संवाद निगल जाती है।

बस
सादर

 

3 comments:

  1. 'देहरादून' को शामिल करने के लिए धन्यवाद। आपका समय शुभ हो.

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  2. बहुत ही सुंदर संकलन आदरणीय दी।
    मुझे स्थान देने हेतु दिल से आभार।
    सादर

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  3. सुंदर रचनाओं से सुसज्जित बेजोड़ संकलन।

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