सादर अभिवादन
आज तीन ही रचना
कल से दस तारीख तक
एक रचना ही मिलेगी....
...रचनाएँ...
भुट्टे मुच्छे तान खड़े
तोरई टिण्डे हर्षाते हैं
चढ़ मचान फैला प्रतान
अब सब्ज बेल लहराते हैं
उस कलाकार में सिरचन की आत्मा
पूरी की पूरी आकर हमारे अंदर समा गई हो।
ऐसे में लगता है,
मानो वह सिरचन आज भी
मेरे अंदर ज़िन्दा है, मरा नहीं है ..
बस यूँ ही ...
साथ मे तेरह मिनट की फिल्म भी
साथ मे तेरह मिनट की फिल्म भी
सौदा दिल से कफ़न का कर आयी थी जो ll
सौगात आँसुओं को मिट्टी के दे आयी थी जो l
तालुक उस पर्दानशीं से इस काफिर का ना हो ll
कोई मीठा झोंका थी या किसी फरेब का साया l
हसीन सी दास्तां थी उसकी नज़रों का साया ll
आज के लिए बस
कल फिर..
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका .. मेरी बतकही को यहाँ जगह देने के लिए ... (पर फ़िल्म आपने 'रिलीज़' होने के पहले ही 'पब्लिकली' कर दिया)...
ReplyDeleteउम्दा लिंको के साथ लाजवाब प्रस्तुति...
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
सादर आभार।