Tuesday, September 7, 2021

754 ...सच कहती हो तुम खुशियां कितनी नाजुक होते हैं

सादर अभिवादन
जैसे-जैसे दिन गुज़र रहा है
बेचैनियां बढ़ती जा रही है
सात वर्ष के बाद
इस वर्ष तीज का उपवास
रखूँगी..भोले बाबा सहायक हों


वही वाली साड़ी
पहनकर आना न
मिलने हमसे
मैचिंग वाली बिंदी
के साथ।



बदहवासियों के आलम में
ई सी जी, इंजैक्शन, ऑक्सीजन…
नीम बेहोशियों में हवासों की गुमशुदगी
उल्टियाँ, घुटन, बेचैनी, दहशत, लाचारी
हाड़ कंपाती ठिठुरन भरी सुरंग से गुजरती रूह
डॉक्टर की कड़क एडवाइज, नसीहतों के बीच
अचानक आना तुम्हारा और
किसी फरिश्ते की तरह दो बार सिर सहला जाना…
कोई बात नहीं आप टेंशन न लो…रिलैक्स!


इसको न भाती है सुखी रोटी
अभी तो है यह बहुत ही छोटी।
थोड़ा-सा हलुआ बनबा दो मां!
मेरी गुड़िया भूखी है।


कैसी उड़ गई है
ओस की बूंदों की जान
सच कहती हो तुम
खुशियां कितनी नाजुक होते हैं

और अंत में एक ग़ज़ल

रफ़्ता-रफ़्ता अब आहों में
बदला है मौसम का मंज़र

लाशें ही लाशें बिखरी है
हर सू देख सितम का मंज़र

'अहद' नहीं देखा बरसों से
पायल की छम छम का मंज़र

फेसबुक लिंक अमित अहद -
https://www.facebook.com/amit.ahad

आज के लिए बस

कल फिर.. 

3 comments:

  1. सभी रचनाएँ शानदार। मेरी कविता शामिल करने के लिए विशेष आभार।

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  2. सुंदर रचनाओं का संकलन।

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  3. कविता, फिल्म,गजल सभी का सुन्दर संकलन !
    मेरी रचना को शामिल करने का हृदय से आभार यशोदा जी!

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