Friday, July 30, 2021

715 ..शरीर की ठण्ड तो सहन हो जाती है बाबूजी, मगर पेट की आग बर्दाश्त नहीं होती

सादर अभिवादन
मैराथन प्रस्तुति का शानदार
बारहवाँ अंक

“ओह, तो इसी से परेशान हो कर भाग गया होगा वह।” -मैंने ठहाका लगाया, फिर बात पूरी की- “तुम भी ना, अजीब आदमी हो! भले मानस, कुत्ते की पूँछ कभी सीधी हो सकती है क्या?”

 “क्यों नहीं हो सकती? मैं एक नया कुत्ता लाऊँगा और फिर कोशिश करूँगा। फिर भी सफल नहीं हुआ तो उसके कोई इंजेक्शन-विन्जेक्शन लगवाउँगा। कहते हैं न, ‘कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती’।”

 अब भला क्या कहता मैं? बस, उस महान दार्शनिक का मुँह ताकता रहा। सोचने लगा, ‘अगर यह सम्भव हो पाता तो दुनिया की कई समस्याएं आसानी से नहीं सुलझ जातीं?’


खोलकर निज अवगुंठन जब  कलियाँ लेती अंगड़ाई, 
झलके कपोलों पर जब यौवन की मादक अरुणाई,
करती है जब मधुप का शीश झुका कर अभिनंदन,
पुष्पों के मधु-सौरभ  से महक उठती  बगिया सारी।




बची हुई सब्ज़ी ख़त्म की और हाथ धो कर उठ खड़ा हुआ। सोच रहा हूँ कि श्रीमती जी मेरी  व्यस्तता और ज़िम्मेदारियों को क्यों नहीं समझतीं। एक तरफ साहित्य की सेवा में कुछ अर्पण करना तो दूसरी तरफ फेसबुक और व्हाट्सएप्प से सम्बंधित ज़िम्मेदारियाँ निभाना। अकेली जान, आखिर क्या-क्या करूँ मैं? वह जानती हैं कि सुबह से रात तक हर समय मोबाइल और कंप्यूटर में सिर खपाता रहता हूँ, फिर भी उनका मन नहीं पसीजता।



भैया जी, हमें कल पड़ोसी के घर में देख कर भी तुमने शोर नहीं मचाया, इसके लिए शुक्रिया! अगर तुम चिल्ला पड़ते तो मोहल्ले वाले शायद हमें पकड़ लेते। वैसे तुम्हारी ख़ामोशी का कोई ख़ास फायदा हमें नहीं मिला। कम्बख्त का पूरा घर छान मारा, मगर कुछ मिला नहीं। साला या तो कड़का है तुम्हारा पड़ोसी या शातिर कि घर में कुछ भी नहीं रखता। उसके कमरे की खिड़की की चिटखनी तो आसानी से टूट गई, लेकिन उसकी आलमारी को तोड़ने में हमें पसीने आ गये। इस सबके बाद भी हम उसके घर से कुल सात सौ बीस रुपये की नकदी ही ले जा सके। खैर, बदनसीबी हमारी!


विस्मय और क्षोभ भरी निगाहों से विशाखा की ओर देख रहे कमलेश व उनकी बेटी ने अर्दली की मदद से विशाखा को सम्हाला। वकील विजेंद्र सिंह भी उनके करीब आ गये।

जज साहब ने अभिजीत से पूछा- "अब भी तुम्हें अपने बचाव में कुछ कहना है?"

अभिजीत, जो अब तक विस्फारित नज़रों से अपनी माँ की ओर देखते हुए उनके द्वारा कही जा रही हर बात सुन रहा था, फीकी हँसी के साथ बोला- "नहीं जज साहब, 'मदर इण्डिया' ने जो कुछ कह दिया है, उसके बाद मुझे कोई सफाई नहीं देनी है। बस इतना कहना चाहता हूँ कि मेरा इरादा सुलेखा की हत्या करने का कतई नहीं था।"


उसके पास जा कर मैं क्रोध में बरसा- "तुम लोगों पर क्या दया करना? मैंने सुबह तुम्हें स्वेटर दिया और आज ही तुम उसे बेच आये।"
"शरीर की ठण्ड तो सहन हो जाती है बाबूजी, मगर पेट की आग बर्दाश्त नहीं होती। भीख नहीं मिलने से मुझे दो दिन से खाना नसीब नहीं हुआ था। मैंने पैसे मांगे थे और आपने स्वेटर दे दिया। बहुत भूख लग रही थी तो दोपहर में आपका दिया स्वेटर बेच कर अपना पेट भरा।... और करता भी क्या बाबूजी?"

17 comments:

  1. शरीर की ठण्ड तो सहन हो जाती है बाबूजी, मगर पेट की आग बर्दाश्त नहीं होती। भीख नहीं मिलने से मुझे दो दिन से खाना नसीब नहीं हुआ था। मैंने पैसे मांगे थे और आपने स्वेटर दे दिया। बहुत भूख लग रही थी तो दोपहर में आपका दिया स्वेटर बेच कर अपना पेट भरा।.
    हकीकत..

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  2. अपनी बात..
    आदरणीय भट्ट जी के बारे में जानकारी नहीं जुटा पाई..
    भट्ट जी अगर आ गए तो वे स्वयं ही बताएंगे
    सादर..

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  3. सुंदर सराहनीय अंक।

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  4. अभिभूत हूँ आपके 'सांध्य दैनिक मुखरित मौन' के इस सुन्दर पटल पर मेरी रचनाओं को आप द्वारा स्थान दिये जाने से! मेरा आभार स्वीकारें आ. यशोदा जी!
    परिचय जैसा विशेष तो कुछ है नहीं बताने को😊। बस यही छुट-पुट कुछ कहानियाँ, लघुकथाएँ और कविता लिखता हूँ। राजस्थान सरकार से सेवानिवृत हूँ। वैसे, कुछ अधिक विस्तृत परिचय मेरे ब्लॉग में मेरी प्रोफाइल में अवश्य अंकित किया है।

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    1. आभार गजेंद्र भाई साहब..
      चलायमान रहें, स्वस्थ रहें
      विदिशा की कथा पढ़ी..
      अच्छी लगी..
      सादर..

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    2. आत्म-कथन :- जब मैं पाँचवीं कक्षा में पढ़ रहा था, तब से ही कहानी-उपन्यास पढ़ना प्रारम्भ कर दिया था। दसवीं कक्षा में आया तो लेखन के प्रति अभिरुचि उत्पन्न हुई। पहली कविता अपने विद्यालय में आयोजित 'अन्तर्विद्यालयी कविता- प्रतियोगिता' में दिये गए शीर्षक पर लिखी तथा द्वितीय पुरस्कार पाया। महाविद्यालय में चार वर्षीय अध्ययन के दौरान कविता के अलावा कहानी-लेखन की ओर भी रुझान हुआ। दो वर्षों तक निरन्तर अन्तर्महाविद्यालयी कहानी- प्रतियोगिताओं में प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ। इससे प्रोत्साहित होकर यदा-कदा लिखता रहा। अध्ययन-काल में अधिकतम लिखा।अपने सेवा-काल में लेखन-कार्य में शिथिल रहा, लेकिन सेवा-निवृत्ति के बाद फिर से लेखन की ओर प्रवृत हुआ। विज्ञान व गणित का विद्यार्थी रहा हूँ पर साहित्य-साधना की ओर प्रारम्भ से ही उन्मुख रहा हूँ। प्रयास यही रहेगा कि पाठकों को सुरुचिपूर्ण व अच्छा साहित्य दूँ।...और हाँ, पाठक बन्धुओं की प्रतिक्रियाएं मेरे लिए प्रेरणा व ऊर्जा का स्रोत बन सकेंगी।

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    3. हार्दिक धन्यवाद देना चाहूँगा यशोदा जी मेरा परिचय मेरे शब्दों में यहाँ कराने के आपके सौजन्य के लिए... आभार महोदया! आपने मेरी रचनाओं के प्रति जो स्नेह दर्शाया है, उसके लिए अतिरिक्त रूप से आपका आभार! 'हरे जख्म' को पढ़ने के लिए इतना समय देने व सराहने के लिए भी अन्तःस्तल से आभार!

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  5. गजेंद्र जी के ब्लॉग पर बहुत कहानियाँ , व्यंग्य, आदि हैं ।आज के सभी लिंक्स पढ़े । मर्मस्पर्शी कहानियाँ पढ़ मन भावुक हो गया ।
    बहुत अच्छी प्रस्तुति बनाई है ।।धन्यवाद यशोदा।

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  6. प्रिय दीदी, आज आदरणीय गजेंद्र सर की संवेदनशील रचनाओं से सुसज्जित अंक देखकर बहुत प्रसन्नता हुई। गजेंद्र सर के लेखन से प्रतिलिपि मंच से परिचित हूं। फेसबुक पर आने के बाद उनके ब्लॉग से भी जुडी। छोटी, बड़ी संवेदनशील कहानियों के साथ कुछ कविताएं भी हैं उनके ब्लॉग पर। व्यंग्य में भी हाथ आजमा लेते हैं अक्सर। सभी कहानियां अत्यंत रोचक और प्रासंगिक विषयों पर रची गई है , जिनकी भाव प्रवणता पाठक के मन को छू जाती है आदरणीय सर को ढेरों शुभकामनाएं और बधाई। उनका लेखन सभी पाठकों तक पहुंचे यही कामना करती हूं। सादर

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    1. आप की समीक्षा तो सदैव ही निःशब्द कर देने वाली होती है आ. रेणु जी! आ. यशोदा जी ने मेरी रचनाओं को इस सुन्दर पटल पर संकलित कर मुझे जो सम्मान दिया है, उसके लिए उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए आप महोदया सहित यहाँ पधारे सभी सुधीजनों के स्नेहिल उद्गारों के लिए अपना आभार प्रकट करता हूँ। माँ सरस्वती का वरद हस्त व आप जैसे सभी स्नेहीजनों की शुभकामनाएँ ही मेरी लेखनी का सम्बल हैं। मुझ पर इसी प्रकार अपनी स्नेहसुधा बरसाती रहें स्नेहमयी! आपकी शुभकामनाओं के लिए ह्रदय-तल से आभार... आपके लिए मेरा आशीष!

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  7. गजेंद्र भट्ट जी के विषय में जानकर बहुत अच्छचा लगा। इस सार्थक प्रयास के लिए आपको बहुत -बहुत शुभकामनाएँ।

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  8. सराहनीय संकलन |गजेंद्र जी की उच्च कोटि की रचनाएँ पढ़कर आनंद आ गया | शुभकामनायें आप दोनों को साहित्य सेवा चलती रहे |

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  9. मुझ अकिंचन को इतना सम्मान! ... अभिभूत हूँ महोदया अनुपमा जी! स्नेह बनाये रखें।

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