सादर अभिवादन
समंदर को ढूँढती है ये नदी जाने क्यूँ,
पानी को पानी की ये अजीब प्यास है!!
आज-कल मेरी हालत भी नदी जैसी ही है
हर दिन नए ब्लाग तलाशती रहती हूँ
आज लाई हूँ "उंचाइयाँ"
ऋतु आसूजा
ऋषिकेश , उत्तराखंड निवासी
2013 से आज तक लिखी चली आ रही है
जीते तो सभी है , पर जीवन वह सफल जो किसी के काम आ सके । जीवन का कोई मकसद होना जरूरी था ।परिस्थितियों और अपनी सीमाओं के अंदर रहते हुए ,कुछ करना था जो मेरे और मेरे समाज के लिए हितकर हो । साहित्य के प्रति रुचि होने के कारण ,परमात्मा की प्रेरणा से लिखना शुरू किया ,कुछ लेख ,समाचार पत्रों में भी छपे । मेरे एक मित्र ने मेरे लिखने के शौंक को देखकर ,इंटरनेट पर मेरा ब्लॉग बना दिया ,और कहा अब इस पर लिखो ,मेरे लिखने के शौक को तो मानों पंख लग गए
इनके ब्लॉग मे फॉलोव्हर अलबत्ता कम हैं पर
रचनाएँ सब सब समझाईश देती हुई ही है
पहली रचना...
खूबसूरत परिभाषा..
बता रही हैं कहानियों के माध्यम से
जिनके जीवन में उम्मीदों का संग है,
उन्हें मुश्किलों से लड़ जाना पसंद है।
उम्मीदें ही तो भरती जीवन में नया रंग हैं।
जीवन के केनवास में सुन्दर रंग भरना
फरिश्तों के जहां से ,
वात्सल्य कि सुनहरी चुनरियाँ ओढे ,
सुन्दर, सजीली ,मीठी ,रसीली ,
दिव्य आलौकिक प्रेम से प्रकाशित ममता की देवी 'माँ '
परस्पर प्रेम ज्ञान के दीपक जला ती रहती।
पर एक बार की बात है, खेलते खेलते हमारी बॉल पड़ोसन आन्टी के शीशे पर जा लगी और शीशा टूट गया ,बस क्या था हम दोनों सहेलियाँ अपने-अपने घरों में यूँ जा बैठी जैसे हम तो कई घंटों से अपनी जगह से हिली ही ना हों ।
जग मुझसे ही जलने लगा ,
मैं तो चिराग था ,फितरत से
मैं जल रहा था ,जग रोशन हो रहा था
कोई मुझको देख कर जलने लगा
स्वयं को ही जलाने लगा
इसमें मेरा क्या कसूर"
वरदान बनकर फलित
होता है नियति से मिला
जीवन का अभिशाप
समाहित होता है श्राप के
मध्य एक संताप स्वयं
के कर्मों का हिसाब।
उद्देश्य मेरा निस्वार्थ प्रेम का पौधारोपण
अपनत्व का गुण मेरे स्वभाव में
शायद इसी लिए नहीं रहता अभाव में
सर्वप्रथम खड़ा हूं पंक्ति में
समाज हित की पौध लिए
...
आज बस
कल के लिए नया कुछ तलाशती हूँ
सादर
आज बस
कल के लिए नया कुछ तलाशती हूँ
सादर
सभी स्वस्थ व प्रसन्न रहें ! सावन के पावन पर्व की सभी को मंगलकामनाएं !
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ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति आदरनीय दीदी | प्रिय रितु जी की सरल, सहज अभिव्यक्ति आज मंच की शोभा बनी , जो बहुत हर्ष का विषय है | रितु जी से ब्लॉग पर आने के बाद से ही परिचित हूँ | फेसबुक पर भी उनकी रचनाएँ पढ़ती रहती हूँ |आज उनकी रचना यात्रा के बारे में कई नयी बातें जानी | रितुजी को बहुत- बहुत बधाई इस अवसर विशेष पर | आज प्रस्तुत उनकी सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं | माँ सरस्वती की कृपा उनकी लेखनी पर यूँ ही बनी रहे |आपको सादर आभार अपनी खोज में ऊचाईयां तक पहुँचने के लिए | उनका ब्लॉग फ़ॉलो कर लिया है |
Deleteप्रिय रितु जी , कृपया ब्लॉग से moderation हटा लें |
ReplyDeleteरितु जी की रचनाओं से सज्जित सार्थक और सुंदर अंक,अभी मैंने आपकी ज्यादा रचनाएँ पढ़ीं नहीं है, फेसबुक पे ज्यादा पढ़ी हैं,जो बहुत ही सारगर्भित हैं, उन्हें मेरी हार्दिक शुभकामनाएं,आदरणीय यशोदा दीदी का आभार 🙏🙏💐💐
ReplyDeleteऋतुजी सृजन-संस्कार के नव ऋतु के आगमन की संभावनाओं का द्वार खोलती हैं।
ReplyDeleteनमन यशोदा जी मेरे ब्लाग ऊंचाइयां पर आने के लिए और प्रोत्साहित करने के लिए , वास्तव में आज तो मेरे ब्लाग की ऊंचाइयां बेशक ऊंची हो गई हैं ।
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