Tuesday, July 27, 2021

712 ..सूर्य चमक कर देता खुशहाली का सन्देश, हवा महककर बोली; "मैं तो घूमी हर देश"

सादर अभिवादन..
जा रही है..
पकड़िए उसे
शान्त सी रही
रोक लीजिए इस जुलाई को
अगस्त का क्या भरोसा...
कोरोना से भय नहीं अब....पर
काफी से अधिक तैय्यारियाँ की है
आतंकवादियों नें...
कब कहाँ किस तरफ और कैसे
धाँय-धुड़ुम हो जाए पता नहीं
सब शुभ की अपेक्षा....
.....
आज फिर एक ही ब्लाग से...
नई सोच..
संवेदनशील हूँ,
मनमंथन से चुने भावों को
कलमबद्ध करने का प्रयास करती हूँ।
सुधा देवरानी... ज़िरकापुर,पंजाब की निवासिनी
2016 से ब्लॉग लिखना शुरु किया और अब तक जारी है
कुल पेज दृश्य 238 278 और 81 फॉलोव्हर के साथ प्रस्तुत है उनकी रचनाएँ

हरी - भरी धरती नीले अम्बर की छाँव
प्रकृति की शोभा बढाते ये गाँव।
सूर्य चमक कर देता खुशहाली का सन्देश,
हवा महककर बोली; "मैं तो घूमी हर देश"।।


बचपन में गिर जाता जमीं पर,
दौड़ी- दौड़ी आती थी।
गले मुझे लगाकर माँ तुम,
प्यार से यों सहलाती थी।
चोट को मेरी चूम चूम कर ,
इतना लाड़ लड़ाती थी।
और जमीं को डाँट-पीटकर
सबक सही सिखाती थी।


झगड़ते थे बचपन मे भी,
खिलौने भी छीन लेते थे एक-दूसरे के....
क्योंकि खिलौने लेने तो पास आयेगा दूसरा,
हाँ! "पास आयेगा" ये भाव था प्यार/अपनेपन का....
उन्ही प्यार के भावों में नफरत को भरते देखा है।
हाँ ! मैने कुछ रिश्तों को टूटते -बिखरते देखा है।


आभूषण रूपी बेड़ियाँ पहनकर...
अपमान, प्रताड़ना का दण्ड,
सहना नियति मान लिया...
अबला बनकर निर्भर रहकर,
जीना है यह जान लिया....
सदियों से हो रहा ये शोषण,
अब विनाश तक पहुँच गया ।
"नर-पिशाच" का फैला तोरण,
पूरे समाज तक पहुँच गया ।।


बेबसी सी कैसी छाई मुझमें
क्यों हर सुख-दुख देखूँ तुममें.....

कब चाहा ऐसे बन जाऊँ,
जजबाती फिर कहलाऊँ।
प्रेम-दीवानी सी बनकर......
फिर विरह-व्यथा में पछताऊँ ।


सूखी थी जब नदी गर्मी में
तब कचड़ा फैंके थे नदी में....?
रास्ता जब नदी का रोका......
पानी ने घर आकर टोका !

मौसम को बुरा कहते अब सब,
सावन को "निरा" कहते हैं सब ।
मत भूलो अपनी ही करनी है ,
फिर ये सब खुद ही तो भरनी है......


ये सब तो थी अनछुई रचनाएँ... अब कुछ और पढ़िए और

एक पत्ता गिरा जब किसी डाल से
नयी कोंपल निकल कर वहाँ खिल गयी

तुम गये जो घरोंदा ही निज त्याग कर
त्यागने की तुम्हें फिर वजह मिल गयी


कभी उसका भी वक्त आयेगा ?
कभी वह भी कुछ कह पायेगी ?
सहमत हो जो तुम चुप सुनते
मन हल्का वह कर पायेगी ?

हरदम तुम ही क्यों रूठे रहते
हर कमी उसी की होती क्यूँ....?
घर आँगन के हर कोने की
खामी उसकी ही होती क्यूँ....?
...
और अंत में
करत करत अभ्यास ते, जड़मति होत सुजान
रसरी आवत -जात ते सिल पर पड़े निशान

सादर

22 comments:

  1. प्रिय सुधा की रचनाएँ मात्र शाब्दिक अभिव्यक्ति नहीं होती सार्थक संदेश से परिपूर्ण भावात्मक आख़्यान होती है। प्रकृति,समाज,मानव मन की परिचित अपरिचित कही-अनकही सहज, सरल और मुखरित गद्य और पद्य रचनाएँ उनकी लेखनी की बहुमुखी प्रतिभा का परिचय देती है।
    सस्नेह शुभकामनाएं।
    यशोदा दी बहुत आभार इस सुंदर संकलन के लिए।

    सादर।

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    1. तहेदिल से धन्यवाद प्रिय श्वेता जी!इतनी स्नेहासिक्त सराहना हेतु...ये सब आपका स्नेह है मेरे प्रति वरना मैं तो बस यूँ ही मन का उद्वेलन उड़ेल देती हूँ...आप सब का प्रोत्साहन न होता तो मुझमें कुछ भी लिखने की हिम्मत ही कहाँ ...
      आपके स्नेह और प्रोत्साहन के लिए दिल से आभार, एवं शुक्रिया।

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  2. बहुत सुन्दर लेखन बहुत अच्छी पकड़ है सुधा जी की कलम पर।

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    1. आपकी सराहना पाकर मन बाग-बाग हो गया आ.जोशी जी! इस बेसकीमती उपहार हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

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  3. सुधाजी,
    पिछले कुछ दिनों से मेरी आँखों में तकलीफ होने के कारण मुखरित मौन में अपने प्रिय रचनाकारों के परिचय पर कुछ लिख नहीं पाई। आपका लेखन तो मुझे बहुत पसंद है ही, आपके द्वारा मेरी रचनाओं पर की गई सार्थक टिप्पणियाँ भी
    मेरे ब्लॉग का गौरव हैं। बहुत सारा स्नेह व शुभकामनाएँ आपके लिए।

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    1. आ.मीना जी अपना और अपनी आँखों का ख्याल रखिएगा मैं समझ सकती हूँ आपकी परेशानी को ...।आप काफी समय से अपने ब्लॉग पर भी नियमित नहीं है स्वास्थ्य और अन्य परेशानियाँ ही ऐसी विवशता खड़ी करती है वरना लेखक लेखन से कुछ समय दूर रह सकता है पर एक पाठक पढ़ने से अपने आप को जब रोकता है तो कितना मुश्किल होता है ये मैं समझ सकती हूँ...
      आपकी रचनाएं होती ही इतनी काबिलेतारीफ हैं कि हर प्रतिक्रिया कम लगती है आपकी सुन्दर रचनाओं के प्रति मेरे मन के भावों को अपने ब्लॉग का गौरव कहकर सम्मानित करने हेतू तहेदिल से धन्यवाद आपका...एवं मेरे प्रति अपने स्नेहिल उद्गार इस प्रतिष्ठित मंच पर साझा करमेरा मान बढ़ाने हेतु दिल से धन्यवाद आभार एवं शुक्रिया।

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  4. बहुत सुंदर एक से बढ़कर एक रचनायें

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    1. सहृय धन्यवाद एवं आभार आ.भारती जी!

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  5. आज हमारी प्रिय सुधा जी की रचनाओं से सजे मंच पर आकर बहुत सुकून मिला। सुधा जी किसी परिचय की मोहताज नहीं। उनका भावपूर्ण लेखन और किसी रचना मर्म को छूती प्रतिक्रियाएं बरबस उनके साथ आत्मीयता की डोर में बांध लेती हैं। उनके लेखन से कहीं ज्यादा ब्लॉग जगत में अनेक ब्लॉग्स पर उनकी विस्तृत टिप्पणियां मौजूद हैं जो उनके समर्पित और उत्तम पाठक होने का प्रमाण हैं। सभी उनके उदार पाठक कर्म के कायल हैं। सुधा जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं इस भावपूर्ण प्रस्तुति पर। यशोदा दीदी को हार्दिक आभार सुधा जी के ब्लॉग से अनमोल मोती ढूंढ कर लाने के लिए।🙏🌷🌷❤️

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    1. एक बात लिखना भूल गई।। मेरे ब्लॉग पर सुधाजी की स्नेहिल उपस्थिति सदैव मेरे लिए अतुलनीय प्रसन्नता का
      विषय रही है । जीरकपुर के नाम से मेरी वादों के चंदनवन महक उठे हैं। जीरकपुर मेरे गांव से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर है। निश्चित रूप से हमारा मिलना किसी दिन तय है। पुनः शुभकामनाएं और हार्दिक स्नेह सुधा जी।

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    2. तहेदिल से धन्यवाद प्रिय रेणु जी मेरे लेखन की स्नेहसिक्त प्रशंसा हेतु...ब्लॉग जगत में सारगर्भित एवं विस्तृत टिप्पणियों से सभी का उत्साहवर्धन करने में तो आपका कोई सानी नहीं ...मैं तो इस मामले में बस आपकी अनुसरणकर्ता मात्र हूँ...अपने ब्लॉग में मेरी उपस्थिति मात्र को अतुलनीय प्रसन्नता का विषय मानना आपकी उदारता एवं बड़प्पन हैं जिसकी मैं सदा से कायल हूँ...मेरे निवासस्थान जीरकपुर से आपका गाँव समीप है यह जानकर मैं भी हमारे मिलन की शुभ घड़ी का बेसब्री से इंतजार कर रही हूँ...मैं अभी यहाँ नई आयी हूँ तो मुझे अंदाजा भी नहीं कि आपका गाँव किस तरफ और कितने करीब है वरना शायद मैं उन्हीं दिनों आपसे मिलने आ भी जाती...पर भगवान ने चाहा तो हम जल्द मिलेंगे।
      सस्नेह आभार।

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  6. आदरणीय सुधा देवरानी जी की रचनाओं में सृजन के संकार, भावों की सरलता और आत्मीयता की प्रगाढ़ता की सुधा प्रवाहित होती है। और हमारी अपनी रचनाओं का भी स्वाद उनकी टिप्पणी के माधुर्य के बिना मिलता ही नहीं, इतनी शांति से अपनी समीक्षा-शैली की सार्थकता की छाप छोड़ जाती हैं।

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    1. आपके आशीर्वचन मेरे लिए अनमोल उपहार स्वरूप है आ.विश्वमोहन जी! सादर नमन एवं आभार आपको एवं आ. यशोदा जी को जिन्होंने मुझे इस मंच के माध्यम से आप सभी के ऐसा सुअवसर प्रदान किया।

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  7. सुधा जी के सुंदर भावपूर्ण लेखन से प्रभावित हुए बिना कोई नहीं रह सकता,हर विषय ऐसा होता है जिससे हम जुड़ जाते हैं तथा हर रचना या लेख कोई न कोई सीख दे ही जाता है,और टिप्पणियां तो हमारी रचना में जान डाल देती हैं,उनकी रचनाओं से परिचय कराने के लिए यशोदा दीदी का बहुत बहुत आभार,सुधा को को हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई।

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    1. तहेदिल से धन्यवाद जिज्ञासा जी ! स्नेहासिक्त एवं सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया द्वारा मेरा उत्साहवर्धन करने हेतु।
      सादर आभार।

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  8. सुधा जी की इन सभी रचनाओं को पढ़ कर इतना तो कहा जा सकता है कि हर रचना कोई न कोई संदेश देती है।
    सार्थक चिंतन करती हुई बेहतरीन रचनाओं से परिचय कराया ।
    तुन इनकी टिप्पणियाँ भी अपनी छाप छोड़ती हैं।
    शुक्रिया यशोदा ।

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    1. आपकी सराहना पाकर लेखन सार्थक हुआ आ. संगीता जी!तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

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  9. हार्दिक धन्यवाद आ.यशोदा जी मेरी रचनाओं को मुखरित मौन मंच प्रदान करने हेतु...पुनः क्षमा याचक हूँ आपके अनुरोध का जबाब समय पर न दे सकी..पर अच्छा ही हुआ आपने मुझसे कई ज्यादा बेहतर लिंक चुनें और मेरी रचनाएं जो अनछुई सी लग रही थी पुनः फल फूल रही हैं सारगर्भित टिप्पणियों से... इसके लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद.. पर ये अनछुई तो नहीं थी बल्कि इन पर तो ढ़ेर सारी अनमोल प्रतिक्रियाएं थी जो गूगल प्लस की भेंट चढ़ गयी इन्हें देखकर मुझे हमेशा बहुत दुख होता है पर आज आपके सहयोग से ये पुनः खिल उठी हैं इसके लिए आपका
    दिल की गहराइयों से शुक्रिया।
    सादर आभार।


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    1. रचनाएँ होती है पढ़ने के लिए
      कोई पढ़े और उसपर प्रतिक्रिया नहो तो
      अन्य कोई और कुछ नहीं लिखता
      अच्छा लगा आपने सभी प्रतिक्रिया पढ़ी और
      यथोचित उत्तर भी दिया..
      सादर..

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  10. सुधा दी कि कलम से तो ब्लॉग जगत भली भांति परिचित है। सार्थक संदेश से परिपूर्ण होती है उनकी रचनाए। मैं तो उनकी लगभग हर रचना पढ़ती हूं।
    वो भी मेरे ब्लॉग आती रहती है। और बहुत ही उत्साहवर्धक टिप्पणियों से मेरा उत्साहवर्धन करती रहती है।
    सुधा दी कि जूनी रचनाए जो मैं नही पढ़ पाई थी उनसे परिचय करवाने के लिए धन्यवाद, यशोदा दी।

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    1. हृदयतल से धन्यवाद ज्योति जी मुझे हमेशा सहयोग एवं स्नेह देने हेतु.....।
      सादर आभार।

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    2. सुधा जी रचनाएं अधिकतर पढ़ती हूं , प्रत्येक , सृजन स्वयं ‌‌में‌ विशिष्ट पकड़ बनाए हुए होते हैं ‌,सुधा जी आप यूं ही लिखती रहें , मां शारदे की क।पा आप पर यूं ही बने रहे ‌।

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