Saturday, May 23, 2020

363... "हमलोग भारत वापस जा सकते हैं, आज डर कुछ कम हुआ।"

सादर अभिवादन...
आज न कुछ कहना है
और न ही कुछ सुनना है
कभी लगता है ..सब
ठीक है..लगता है
सिर्फ... दिखता नहीं है

ठीक...पता नहीं कब होगा
चलिए चलें आज का पिटारा देखें...


चीनी कानाफूसी ....

"अरे वाहः! फुटबॉल खेलने वाला पार्क खुल गया।" चौंकते हुए मैं बोली। शाम का समय था और चारों जन, मैं, मेरे पति और बेटे-बहू के साथ टहलने निकले थे। पचासी दिनों से पसरा सन्नाटा फुटबॉल पर पड़ते थाप से टूट गया था।
"हाँ माँ! बच्चों और बड़ों को खेलता देखकर अच्छा लग रहा है। कल हमलोग पहाड़ों की तरफ लॉन्ग ड्राइव पर घूमने निकलेंगे।" चहकते हुए मेरी बहू ने कहा।
"हमलोग भारत वापस जा सकते हैं, आज डर कुछ कम हुआ।" मैं बोली।


परिपक्वता ......

सर्वस्व से विराम का
मध्य का तत्व
जीवन से निस्तार
का संपूर्ण शोध हो...
किंतु 
प्रकृति के रहस्यों का
सूक्ष्म अन्वेषण,
"आत्मबोध"
विरक्ति का मार्ग है


जाने कहाँ खो गई हूँ , मैं ....

एक हलचल
एक बेचैनी
एक तलाश
एक तिश्नगी
कुछ भ्रान्त हूँ .. मैं क्लांत हूँ
कि, कौन कहानी का किस्सा हूँ ,
मैं ?



अगर बाहर मैं जाती हूँ,मेरे पीछे वो आता है,
जो रुक जाते कदम मेरे,नहीं पग वह बढ़ाता है।

वो पीछा करता नजरों से,जहाँ मैं दूर जाती हूँ,
जो मैं नजरें उठाती हूँ,नजर ना वह उठाता है ।

मिले फ़ुर्सत कभी तो ...

"शायद  प्यार करना मुझे आया ही नहीं आज तक,
 मिले फ़ुर्सत कभी तो .. आकर थोड़ा बतला देना ..."

शायद  प्यार करना मुझे आया ही नहीं आज तक,
मिले फ़ुर्सत कभी तो .. आकर थोड़ा बतला देना ...
....
आज बस
शायद कल फिर..
सादर




3 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति।सभी रचनाएँ बेजोड़।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई

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  2. सस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
    सुंदर-सुंदर रचनाओं को साझा करने के लिए साधुवाद

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  3. सुंदर प्रस्तुति।

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