सादर अभिवादन
परिवर्तन चक्र तीव्र गति से घूम रहा है।
सामाजिक स्थिति बहुत तेजी से बदल रही है।
ऐसे में मनुष्य एक विचित्र से झंझावात में फंसा हुआ है।
बाह्य रूप से चारों ओर भौतिक एवं आर्थिक प्रगति दिखाई देती है, सुख-सुविधा के अनेकानेक साधनों का अंबार लगता जा रहा है
अब रचनाएं देखिए....
अब रचनाएं देखिए....
पहली रचना एक बंद ब्लॉग से
हमारी दुनिया में जो चीजें तय थीं
वे समय के दुःख में शामिल हो एक
अंतहीन...अतृप्त यात्राओं पर चली गयीं
लेकिन-
नहीं था तय ईश्वर और जाति को लेकर
मनुष्य के बीच युद्ध!
ज़मीन पर बैठते ही चिपक जायेंगे पर
और मारी जायेंगी हम हिंसक वक़्त के हाथों
चिड़ियों ने तो स्वप्न में भी
नहीं किया था तय!
पेड़ों की डाली पे झूले झुलाये
फूलों की खुशबू को वो गुनगुनाए
प्रीत के गीत गाकर वो चालाक भँवरा
पुष्पों को लुभाने लगा
कभी पास आकर कभी दूर जाकर
अदाएं दिखाने लगा..
एक औरत हूँ
दूसरी औरत को
बेइज्जत होते देख मन
हाहाकार कर उठता है ..
अखबार के पन्ने हों या
दूरदर्शन में खबर हो
तन ,मन,जान से खेली जाती
बेबस औरत की कहानी होती है ..
पीताम्बर धारण किया है
काली कमली ओढी
मोर मुकुट शीश पर सजा है
हुए है तैयार वन को जाने को
धेनुओं को चराने को
हाथों में बाँसुरी लिए हैं
संग लिए है ग्याल बालों को
दिन कब बीत जाता है
दौर मुश्किल
बड़ी कशमकश हो रही है,
गुनाहों की महफ़िल
सजी दिख रही है।
सोचा था मनमानी
मुद्दतों चलेंगी,
ज़्यादतियाँ तभी
बेशुमार हमने की हैं!
मैं सुनती हूँ
अपने अंदर
बेचैन कर देने वाली चुनौतियां
जो जीवन की उत्कृष्ट राह की ओर
धकेलती है मुझे
परिचय कराती है
अपने ही एक भिन्न अक्स से
ये चुनौतियां
मेरी नींदे उड़ा देती है
आज बस
कल फिर
सादर
आज बस
कल फिर
सादर
लाजवाब रचनाओं का गुलदस्ता!!!
ReplyDeleteआदरणीय यशोदा जी मेरी रचना को अपनी पत्रिका में स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार!!
ReplyDeleteनहीं था तय ईश्वर और जाति को लेकर
ReplyDeleteमनुष्य के बीच युद्ध!
बहुत ही बेहतरीन रचनाओं के प्रकाशन के लिए आभार। सादर
शानदार प्रस्तुतीकरण उम्दा लिंक संकलन...
ReplyDeleteमेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार।
शानदार संकलन आज का |
ReplyDeleteमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद यशोदा जी|
शुभकामनाएं
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