Monday, May 11, 2020

351.."रघु के बाबा, हम वर्षों से गांव नहीं गए, तुम्हे रास्ता याद तो है ना "

सादर अभिवादन
रास्ता खुला
आवा-जाही शुरु हुई

बसों की भी
ट्रेनों की भी
आशंकाओं की भी
लेना तो पड़ेगा मोल
भावी खतरो का
चलिए जो है सो..
रचनाए पढ़ते हैं...
इस ब्लॉग में पहली बार
दो रचनाएँ


गांव बहुत दूर है .....मधुलिका पटेल

कारखाने से मिली बची तन्खा 
को लेकर 
लौटते समय मन ने सोचा, 
शायद ही अब दोबारा जी पाऊं 
घर की देहलीज़ पर 
कांपते कदमों ने अपनी बेबसी सुना दी 
मेरा काम छूट गया 
हमें अब पैदल ही 
अपने गांव जाना होगा 


माँ और उसकी कोख ....अखिलेश शुक्ला
माँ और उसकी कोख
दादा की बेरंग सोच,
दादी के बेढंग बोल,
पिता की अनकही वेदना,
काकी की नष्ट होती चेतना,
को देखकर ;
गर्भ से एक अनखिली मासूम सी; 
मेरी कली बोली-
माँ ! क्या मैं बाहर आ जाऊं ?

क्यों नहीं लिखते... श्वेता सिन्हा

ओ जादुई चितेरे 
तुम्हारी बनायी
तूलिका से चित्र
जीवित हो जाते हैं!
अपनी भविष्यद्रष्टा
लेखनी से
बदल डालो न
संसार की विसंगतियों को,
अपने अमोघास्त्र से
तुम क्यों नहीं
लिखते हो...



किसलय ...आशा सक्सेना

बिना किसलय हुई  वीरान बगिया  
 माली की  देखरेख के बिना
माली उलझा अपने आप में
बिना सही  संसाधनों के |
एक समय ऐसा था
जब गुलशन परिसर में घुसते ही
सुगंध आने लगती थी


वो करके नशा फिर झिझकने लगे ...प्रीती श्रीवास्तव

नशा इस कदर उनपे छाया के फिर।
वो तो नींद में यारों चलने लगे।।

जो आयी कयामत न पूछों ये तुम।
सरे बज्म ही वो बहकने लगे।।

न पूछों मुहब्बत में हाल फिर।
वो शम्मा के जैसे पिघलने लगे।।


घर से बाहर ...रश्मि प्रभा

कहने को तो हम निकल गए थे
घर से बाहर की दुनिया में
क्योंकि,खुद को आत्मनिर्भर बनाना था
अपने आप में कुछ बनना था
उठानी थी जिम्मेदारियां ...
हर स्वाभाविक भय को
माँ की आलमारी में रख
चेहरे पर निर्भीकता पहनकर
निकल गए थे हम घर से
...
बस,
कल फिर
सादर



5 comments:

  1. सभी रचनाएं बहुत ही उत्कृष्ट है । रचनाएं पढ़ने के बाद बहुत ही सुखद अनुभुत मिलाी ।

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  2. सुंदर रचनाओं का संकलन।

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  3. धन्यवाद यशोदा जी मेरी रचना शामिल करने के लिए |

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  4. सुंदर सुभग रचनाओं की प्रस्तुति

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  5. मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से शुक्रिया। बहुत सुंदर संकलन की प्रस्तुति

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