Tuesday, April 28, 2020

338 दुनिया दारी की बाजारी अंकगणित का प्रश्न नहीं है

आज वाकई अच्छा लग रहा है
एक नाई चिल्लाता हुआ घूम रहा था
बाल सेट करवा लो
भय तो लगा
पर डर के आगे जीत है
फार्मूला अपनाया..
बुलाकर बैठ गए सिर नवाकर...

अब आज की रचनाएँ देखें...

दुनिया दारी की बाजारी अंकगणित का प्रश्न नहीं है
रिश्तों की घट जोड़ उधारी स्वार्थ रहित शुभ स्वप्न नहीं है
अपने मन के बीतराग को कौन समझ सकता है बेहतर
आत्म तत्व की सहज समाधि नहीं मिली माया में रहकर ||


आदमी, आदमी से आदमी का 
पता पूछता है 
खुदा का बंदा खुदा को 
हर बन्दे में ढूँढता है । 


आओ आज कतरनों से कविताएं रचते हैं 
और मिलकर कचरों से कहानियाँ गढ़ते हैं।


रहें आबाद वो चाहे जहां हो।
खुदा शायद यही अब चाहता है।

हुई मुद्दत उसे देखे हुये तो।
बिना उसके जीना लगता सजा है।।


ऊबड़-खाबड़ सी वो राहें,
शान्ति अनंत थी घर-आँगन में।
अपनापन था सकल गाँव में,
भय नहीं था तब कानन में।
यहाँ भीड़ भरी महफिल में,
मुश्किल है निर्भय रह पाना।
दशकों पहले शहर आ गये,
नहीं हुआ फिर गाँव में जाना।


भूख पेट में थी
खाना मदद के इश्तिहारों में
और रास्ता लम्बा

भूख ने दम तोड़ दिया
इश्तिहार चमकते रहे.

उलूक की खबर है क्या

बेवफाई कर
जिंदा रहेगा

घर में रहेगा
खबर में रहेगा

वफा करेगा
वफादार रहेगा

कोई
कुत्ता कहेगा
बेमौत मरेगा




3 comments:

  1. बेहतरीन संकलन ,बेहतरीन रचनाओं का संगम ,आभार दिग्विजय जी ,धन्यवाद मुझे शामिल करने के लिए

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  2. उम्दा लिंको से सजी शानदार प्रस्तुति...
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

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