Friday, October 4, 2019

134..मेरी भावनाएँ..आदरणीय रश्मि दीदी

सोच रहे थे
कुछ ताजी रचनाएँ प्रस्तुत की जाए
पर उथल-पुथल हुई
मन उचट गया
अभिवादन स्वीकारें..आज पढ़िए एक ही ब्लॉग की रचनाएँ
ब्लॉग मेरी भावनाएँ से मेरी पसंदीदा रचनाएँ
पहले रचनाकार का परिचय उन्हीं के शब्दों में

मैं रश्मि प्रभा
हमारे घर का, विशेषकर हमारी माँ का सबसे प्रिय खेल था 
हमें कल्पना देना ... हमने उन कल्पनाओं के संग 
आँखमिचौली खेली पूछा - मछली मछली कितना पानी ? 
क्षितिज तक जाने का अथक प्रयास किया उसके आगे 
ध्यानावस्थित हुए सत्य और झूठ दोनों से काल्पनिक 
रिश्ता जोड़ा तब कहीं जाकर 
"जीवन की एक मुट्ठी धूप मिली" और यही हकीकत है ...

अब प्रस्तुत है रचनाएँ..

जब तुम्हारी ही ज़रूरत सबको होती है,
तो धरती का ज़र्रा ज़र्रा तुम्हारे साथ होता है,
उस रास्ते के व्यवधान को
मिटाने की दुआएं लिए,
एक संवेदनशील वर्ग होता है,
तुम पर कोई आंच न आये,
इसके लिए जो साम दाम दंड भेद का
मार्ग अपनाता है,
उसे तुम कभी अनदेखा,
अनसुना मत करो ।

खूबसूरत,
सुविधाजनक घरों की भरमार है,
इतनी ऊंचाई
कि सारा शहर दिख जाए !
लेकिन,
वह लाल पक्की ईंटों से बना घर,
बेहद खूबसूरत था ।
कमरे के अंदर,
घर्र घर्र चलता पंखा,
सप्तसुरों सा मोहक लगता था ।

भूख लगी थी,
रोऊँ...
उससे पहले बाबा ने टोकरी उठा ली !
घनघोर अंधेरा,
मूसलाधार बारिश,
तूफान,
और उफनती यमुना ...
मैं नारायण बन गया,
अपने लिए,
बाबा वासुदेव और माँ देवकी के लिए ।
घूंट घूंट पीता गया बारिश की बूंदों को,
शायद इसीलिए,
चमत्कारिक रूप से यमुना शांत हो गईं,

स्त्री दुआओं का धागा है, मन्नतों की सीढ़ियाँ है,  ... 
मान्यताओं पर जाएँ तो दुर्गा,लक्ष्मी, पार्वती है 
निःसंदेह, ताड़का,मंथरा, होलिका,शूर्पणखा भी है 
ठीक उसी तरह जिस तरह, ब्रह्मा,विष्णु,महेश हैं 
तो कंस, रावण, दुःशासन, हिरण्यकश्यप भी है  .... 
फिर भी पुत्र को घी का लड़डू माना जाए, 
और माखन बनानेवाली यशोदा को 
अर्थहीन माना जाए - सही नहीं।

क्या हुआ
यदि द्रौपदी का चीरहरण हुआ
और सभा बेबस चुप रही ?!
क्या हुआ
यदि सीता वन में भेज दी गईं
उसके बाद क्या हुआ,
यह अयोध्या क्यों सोचती !
प्रश्न उठाया राम ने,
तो पूरी सभा अकुलाई चुप रही
तो क्या हुआ ?
सीता धरती में गईं,

टिकोले में नमक मिर्च मिलाती
वह लड़की
सोलह वर्ष के किनारे खड़ी
अल्हड़ लहरों के गीत गाती थी !
भोर की पहली किरण के संग
जागी आँखों में,
उसके सपने उतरते थे

कुछ पुष्प चुन लाई हूँ
पसंद आएगा आपको भी
चलती हूँ
सादर









4 comments:

  1. वाह ! बहुत मनोरम , मनभावन अंक आदरणीयदीदी | रश्मि जी की कविताओं से मैं शब्दनगरी से वाकिफ हूँ | उनकी अद्भुत जीवनदर्शन से भरी रचनाओं को कौन बार -बार पढ़ना नहीं चाहेगा ये एक सुघड़ और संवेदनशील कवियित्री तो हैं ही , एक प्रखर चिंतक भी हैं | रश्मि जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें | आज की उनकी सभी रचनाएँ बेहद ख़ास हैं | अभी प्रतिक्रिया तो नहीं दे पा रही पर मुझे -- क्याखोया क्या पाया और सबको समय समझाएगा लाजवाब लगी | उनके लेखन की निरंतरता की कामना करती हूँ | सादर |पुनः बधाई |

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