1 अक्टूबर अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस
सादर अभिवादन
वैसे तो वरिष्ठजनों का सम्मान हर दिन, हर पल हमारे मन
में होना चाहिए, लेकिन उनके प्रति मन में छुपे इस
सम्मान को व्यक्त करने के लिए एवं बुजुर्गों के
प्रति चिंतन की आवश्यकता के लिए औपचारिक तौर
पर भी एक दिन निश्चित किया गया है।
अत: प्रतिवर्ष 1 अक्टूबर का दिन अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस
या अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस
मनाने की शुरुआत सन् 1990 में की गई थी। विश्व में बुजुर्गों के
प्रति होने वाले दुर्व्यवहार और अन्याय को रोकने के लिए लोगों में
जागरूकता फैलाने के लिए 14 दिसंबर 1990 को यह निर्णय
लिया गया। तब यह तय किया गया कि हर साल 1 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में मनाया जाएगा,
और 1 अक्टूबर 1991 को पहली बार अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस या अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाया गया।
घर में तीर्थ
बुजुर्गों का सम्मान
ईश्वर कृपा।
उचित सेवा
सुधरे परलोक
ढेरों आशीष।
मार्गदर्शक
समाज का विकास
सेवा-विश्वास।
वरिष्ठ जन
प्रसन्नता से कटे
बाकी जीवन।
-सुशील कुमार शर्मा
अब नियमित रचनाएँ...
माँ का दिव्य स्वरूप .....
पाप बढ़े धरा पे बहुतेरे
खोल दे माँ बंद त्रिनेत्र तेरे
मिटे अधर्म का घनघोर अंधेरा
खुशियों भरा हो नया सबेरा
मेरी माँ का देखो दिव्य स्वरूप
अद्भुत,अनुपम,अलौकिक रूप
माँ दुर्गा के नौ रूप में जीवन के विभिन्न आयाम ...
माँ दुर्गा के नौ रूप है इस जीवन का आधार
कल्याणकारिणी देवी करतीं जन जन का उद्धार।
शैलपुत्री माता तुम नव चेतना का संचार करो
ब्रहमचारिणी माता ,अनंत दिव्यता से मन भरो ।
माना कि मन हताश है .....
चला कर तो एक बार देख लो ,
अपाहिज में चलने की प्यास है ,
कह कर मुझे मरा क्यों हँसते,
यह भी लीला उसकी रास है ,
लौट कर आऊंगा या नही मैं ,
क्या पता किसको एहसास है ,
जहाँ की दुश्मनी कबूल है ....
नजर झुकी झुकी सी है हया की है ये इंतिहा ।
लबों पे जुम्बिशें लिए ये बेख़ुदी कुबूल है ।।
गुनाह आंख कर न दे हटा न इस तरह नकाब ।
जवां है धड़कने मेरी ये आशिकी कबूल है ।।
आइए एक नया इतिहास लिखेँ
गणित
की लिखी
पुरानी
एक किताब को
किसी
बेवकूफ
के द्वारा
लिखा गया
इतिहास
बता रहे हैं
...
आज बस
आदेश दें
सादर
माँ का दिव्य स्वरूप .....
पाप बढ़े धरा पे बहुतेरे
खोल दे माँ बंद त्रिनेत्र तेरे
मिटे अधर्म का घनघोर अंधेरा
खुशियों भरा हो नया सबेरा
मेरी माँ का देखो दिव्य स्वरूप
अद्भुत,अनुपम,अलौकिक रूप
माँ दुर्गा के नौ रूप में जीवन के विभिन्न आयाम ...
माँ दुर्गा के नौ रूप है इस जीवन का आधार
कल्याणकारिणी देवी करतीं जन जन का उद्धार।
शैलपुत्री माता तुम नव चेतना का संचार करो
ब्रहमचारिणी माता ,अनंत दिव्यता से मन भरो ।
माना कि मन हताश है .....
चला कर तो एक बार देख लो ,
अपाहिज में चलने की प्यास है ,
कह कर मुझे मरा क्यों हँसते,
यह भी लीला उसकी रास है ,
लौट कर आऊंगा या नही मैं ,
क्या पता किसको एहसास है ,
जहाँ की दुश्मनी कबूल है ....
नजर झुकी झुकी सी है हया की है ये इंतिहा ।
लबों पे जुम्बिशें लिए ये बेख़ुदी कुबूल है ।।
गुनाह आंख कर न दे हटा न इस तरह नकाब ।
जवां है धड़कने मेरी ये आशिकी कबूल है ।।
आइए एक नया इतिहास लिखेँ
गणित
की लिखी
पुरानी
एक किताब को
किसी
बेवकूफ
के द्वारा
लिखा गया
इतिहास
बता रहे हैं
...
आज बस
आदेश दें
सादर
सुन्दर प्रस्तुति। आभार यशोदा जी।
ReplyDeleteगांधी जयंती की पूर्व संध्या पर शत शत नमन
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति..
सादर..
सुंदर संकलन
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteमेरी रचना 'जलमग्न हुए आशियाने' पर मुझे 'मुखरित मौन' ब्लॉग की ओर से आज 9:48 am पर चर्चा हेतु आमंत्रण प्राप्त हुआ था लेकिन 'मुखरित मौन' पर मेरी रचना तो नदारत है |
कोई तकनीकी गड़बड़ी हो तो कृपया ठीक कीजिए ताकि मेरी रचना पाठकों के समक्ष प्रदर्शित हो सके
सादर आभार
बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार यशोदा जी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संकलन, बधाई
ReplyDeleteबहुत शानदार प्रस्तुति।सभी रचनाकारों को बधाई।
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