सादर नमस्कार
रविवार का दिन
काम कुछ नहीं
पर..
फुरसत मिनट की भी नहीं
चलिए चलते हैं जो पढ़ा आप भी देखिए
सत्य की नहीं, जुमलों की चलती है बाजारवाद में
बाजार जाता हूँ तो देख कर लगता है कि जमाना बहुत बदल गया है. साधारण सी स्वभाविक बातें भी बतानी पड़ती है. कल जब दही खरीदने लगा तो उसके डिब्बे पर लिखा था कि यह पोष्टिक दही घास खाने वाली गाय के दूध का है. मैं समझ नहीं पाया कि इसमें बताने जैसा क्या है? गाय तो घास ही खाती है. मगर इतना लिख देने मात्र से वो दही सबसे तेजी से बिक रहा था. बाकी के दही के डिब्बे जैसे सजे थे वैसे ही सजे थे. किसी को तो क्या कहें, हमने खुद भी वही खरीदा जबकि बाकी दहियों से मंहगा भी था.
कोई चाहत नहीं है ..
कोई चाहत नहीं है अब तो
चाहा नहीं कुछ किसी से
जी जी के मरने से है बेहतर
वे दोचार दिन खुशहाल जिन्दगी के |
उन लम्हों में खो जाने के लिए
है जिन्दगी बहुत छोटी सी
गगन में तारे टूटे ...
मुँह से ना निकले बैन
और बंद कर लिए नैन
तात क्यों मुझसे रूठे
गगन में तारे टूटे॥
चलना मुझको सिखलाया।
पद्दी पर खूब घुमाया।
काँटा कोई चुभा उठाया।
गोदी में लाढ़ लढ़ाया।
अब शूल जिगर के पार।
सहला दो फिर एक बार।
फफोले बन-बन फूटे॥
माहिया (कुड़िये) ....
कुड़िये कर कुड़माई,
बहना चाहे हैं,
प्यारी सी भौजाई।
धो आ मुख को पहले,
बीच तलैया में,
फिर जो मन में कहले।।
नदियाँ सबकी होती है ....
एक नदी जो मेरे लिए ही बहती थी
निर्वाण के रास्ते पर चल दी है
जबकि नदियाँ सबकी होती है
और किसीकी भी नही होती है
आज का कोटा पूरा..
सन्डे बाजार घूमा जाए अब
सादर..
रविवार का दिन
काम कुछ नहीं
पर..
फुरसत मिनट की भी नहीं
चलिए चलते हैं जो पढ़ा आप भी देखिए
सत्य की नहीं, जुमलों की चलती है बाजारवाद में
बाजार जाता हूँ तो देख कर लगता है कि जमाना बहुत बदल गया है. साधारण सी स्वभाविक बातें भी बतानी पड़ती है. कल जब दही खरीदने लगा तो उसके डिब्बे पर लिखा था कि यह पोष्टिक दही घास खाने वाली गाय के दूध का है. मैं समझ नहीं पाया कि इसमें बताने जैसा क्या है? गाय तो घास ही खाती है. मगर इतना लिख देने मात्र से वो दही सबसे तेजी से बिक रहा था. बाकी के दही के डिब्बे जैसे सजे थे वैसे ही सजे थे. किसी को तो क्या कहें, हमने खुद भी वही खरीदा जबकि बाकी दहियों से मंहगा भी था.
कोई चाहत नहीं है ..
कोई चाहत नहीं है अब तो
चाहा नहीं कुछ किसी से
जी जी के मरने से है बेहतर
वे दोचार दिन खुशहाल जिन्दगी के |
उन लम्हों में खो जाने के लिए
है जिन्दगी बहुत छोटी सी
गगन में तारे टूटे ...
मुँह से ना निकले बैन
और बंद कर लिए नैन
तात क्यों मुझसे रूठे
गगन में तारे टूटे॥
चलना मुझको सिखलाया।
पद्दी पर खूब घुमाया।
काँटा कोई चुभा उठाया।
गोदी में लाढ़ लढ़ाया।
अब शूल जिगर के पार।
सहला दो फिर एक बार।
फफोले बन-बन फूटे॥
माहिया (कुड़िये) ....
कुड़िये कर कुड़माई,
बहना चाहे हैं,
प्यारी सी भौजाई।
धो आ मुख को पहले,
बीच तलैया में,
फिर जो मन में कहले।।
नदियाँ सबकी होती है ....
एक नदी जो मेरे लिए ही बहती थी
निर्वाण के रास्ते पर चल दी है
जबकि नदियाँ सबकी होती है
और किसीकी भी नही होती है
आज का कोटा पूरा..
सन्डे बाजार घूमा जाए अब
सादर..
बेहतरीन संकलन
ReplyDeleteसुन्दर संकलन
ReplyDeleteसुंदर संकलन दी अच्छी रचनाएँ हैं।
ReplyDeleteव्वाहहहह..
ReplyDeleteआभार..
सादर..
सुप्रभात
ReplyDeleteउम्दा लिनक्स |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
ReplyDeleteवाह,बहुत सुंदर प्रस्तुति।
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