सादर अभिवादन....
ज़िंदगी नीम तो कभी है स्वाद में करेला
समय की चाल में हर घड़ी नया झमेला
दुनिया की भीड़ में अपनों का हाथ थामे
चला जा रहा बेआवाज़,आदमी अकेला
-श्वेता सिन्हा
कितना सही बात निकली है
हर क़दम पर फिट..
चलिए लिंकों की ओर....
धोखा ...
विध्वंस है
आँखें कुछ कहती हैं
निभाये कर्म कुछ कहते हैं
जुबान से कही बातें
सार्थक जब नहीं होती है
ना जाने कब तक
सुल्तान बाबा भारती
खड़क सिंह के किस्से
पढ़े कहे सुने जाते रहेंगे
बादल ....
तू इक सूत के जैसा है , जो ठोस ना है ,पर कोमल है
मेरे कपड़े तेरी सीरत है , मेरे चादर तेरा ही बल है !
मेरी साँसें हैं ये काले हर्फ़ ,ये काफिया ध्यान मेरे मन का
मेरा घाटा है बेमानी शेर , गज़लों में हरदम हल है !
पता नहीं कितनी पुरानी रचना है ....
जब भी मुंह ढक लेता हूं,
तेरे जुल्फों की छांव में.
कितने गीत उतर आते हैं,
मेरे मन के गांव में!
एक गीत पलकों पे लिखना,
एक गीत होंठो पे लिखना.
यानी सारे गीत हृदय की,
मीठी चोटों पर लिखना !
अक्ल की बाढ़ ....
यह अक्ल नाम की बला जो इन्सान के साथ जुड़ी है बड़ी फ़ालतू चीज़ है. बाबा आदम के उन जन्नतवाले दिनों में इसका नामोनिशान नहीं था. मुसम्मात हव्वा की प्रेरणा से अक्ल का संचार हुआ, परिणामस्वरूप हाथ आई ख़ुदा से रुस्वाई. इसीलिये इंसान को अक्ल आये यह कुछ को तो बर्दाश्त ही नहीं, उनका कहना है इंसान को खुद सोचने-विचारने की जरूरत ही नहीं . ख़बरदार! अपनी अक्ल कहीं भिड़ाई तो समझो गए दोज़ख में.
भारतीय-संस्कृति और सभ्यता के प्रतीक हैं मिट्टी के दीए
आज भले ही दीपावली में चारों ओर कृत्रिम रोशनी से पूरा शहर जगमगा उठता है, लेकिन मिट्टी के दीए बिना दिवाली अधूरी है। मिट्टी के दीए बनने की यात्रा बड़ी लम्बी होती है। इसकी निर्माण प्रक्रिया उसी मिट्टी से शुरू होती है, जिससे यह सारा संसार बना है। यह मिट्टी रूप में भूमि पर विद्यमान रहती है, लेकिन एक दिन ऐसा भी आता है, जब कोई इसे कुदाल से खोदता है और फिर बोरे में भरकर गधे की पीठ पर लाद देता है। इस दौरान वह अनायास ही मिलने वाली सवारी का आनंद तो लेता है, लेकिन उसका मन अपने भावी जीवन के संबंध में शंकाकुल भी रहता है। उसकी यह शंका निर्मूल नहीं होती। गधे की पीठ से उतार कर उसे कुम्हार (प्रजापति) के आंगन में उंडेला जाता है।
चलते-चलते ......
खबरनामा .....
नीचे आ कबूतरों पर छा जाये कबूतर
कबूतर से कबूतर लड़वाये कबूतर
कुछ उड़ते जमीन में ले आये कबूतर
कुछ पैदल चलते उड़वाये कबूतर
कबूतरों के लिये कुछ कह जाये कबूतर
सुबह सबेरे समाचार हो जाये कबूतर
अब बस..
आज का दिन भारी है
बारिश हो रही है
अरब सागर में तूफान आया है
और अभी छत्तीसगढ़ मे छाया है
सादर
ज़िंदगी नीम तो कभी है स्वाद में करेला
समय की चाल में हर घड़ी नया झमेला
दुनिया की भीड़ में अपनों का हाथ थामे
चला जा रहा बेआवाज़,आदमी अकेला
-श्वेता सिन्हा
कितना सही बात निकली है
हर क़दम पर फिट..
चलिए लिंकों की ओर....
धोखा ...
विध्वंस है
आँखें कुछ कहती हैं
निभाये कर्म कुछ कहते हैं
जुबान से कही बातें
सार्थक जब नहीं होती है
ना जाने कब तक
सुल्तान बाबा भारती
खड़क सिंह के किस्से
पढ़े कहे सुने जाते रहेंगे
तू इक सूत के जैसा है , जो ठोस ना है ,पर कोमल है
मेरे कपड़े तेरी सीरत है , मेरे चादर तेरा ही बल है !
मेरी साँसें हैं ये काले हर्फ़ ,ये काफिया ध्यान मेरे मन का
मेरा घाटा है बेमानी शेर , गज़लों में हरदम हल है !
पता नहीं कितनी पुरानी रचना है ....
जब भी मुंह ढक लेता हूं,
तेरे जुल्फों की छांव में.
कितने गीत उतर आते हैं,
मेरे मन के गांव में!
एक गीत पलकों पे लिखना,
एक गीत होंठो पे लिखना.
यानी सारे गीत हृदय की,
मीठी चोटों पर लिखना !
अक्ल की बाढ़ ....
यह अक्ल नाम की बला जो इन्सान के साथ जुड़ी है बड़ी फ़ालतू चीज़ है. बाबा आदम के उन जन्नतवाले दिनों में इसका नामोनिशान नहीं था. मुसम्मात हव्वा की प्रेरणा से अक्ल का संचार हुआ, परिणामस्वरूप हाथ आई ख़ुदा से रुस्वाई. इसीलिये इंसान को अक्ल आये यह कुछ को तो बर्दाश्त ही नहीं, उनका कहना है इंसान को खुद सोचने-विचारने की जरूरत ही नहीं . ख़बरदार! अपनी अक्ल कहीं भिड़ाई तो समझो गए दोज़ख में.
भारतीय-संस्कृति और सभ्यता के प्रतीक हैं मिट्टी के दीए
आज भले ही दीपावली में चारों ओर कृत्रिम रोशनी से पूरा शहर जगमगा उठता है, लेकिन मिट्टी के दीए बिना दिवाली अधूरी है। मिट्टी के दीए बनने की यात्रा बड़ी लम्बी होती है। इसकी निर्माण प्रक्रिया उसी मिट्टी से शुरू होती है, जिससे यह सारा संसार बना है। यह मिट्टी रूप में भूमि पर विद्यमान रहती है, लेकिन एक दिन ऐसा भी आता है, जब कोई इसे कुदाल से खोदता है और फिर बोरे में भरकर गधे की पीठ पर लाद देता है। इस दौरान वह अनायास ही मिलने वाली सवारी का आनंद तो लेता है, लेकिन उसका मन अपने भावी जीवन के संबंध में शंकाकुल भी रहता है। उसकी यह शंका निर्मूल नहीं होती। गधे की पीठ से उतार कर उसे कुम्हार (प्रजापति) के आंगन में उंडेला जाता है।
चलते-चलते ......
खबरनामा .....
नीचे आ कबूतरों पर छा जाये कबूतर
कबूतर से कबूतर लड़वाये कबूतर
कुछ उड़ते जमीन में ले आये कबूतर
कुछ पैदल चलते उड़वाये कबूतर
कबूतरों के लिये कुछ कह जाये कबूतर
सुबह सबेरे समाचार हो जाये कबूतर
अब बस..
आज का दिन भारी है
बारिश हो रही है
अरब सागर में तूफान आया है
और अभी छत्तीसगढ़ मे छाया है
सादर
बढ़िया संकलन दी सभी रचनाएँ बहुत अच्छी है।
ReplyDeleteमेरी लिखी पंक्तियों को शामिल करने के लिए आभारी हूँ दी।
बढ़िया अंक...
ReplyDeleteसादर..
हार्दिक आभार छोटी बहना
ReplyDeleteशुभ संध्या
सराहनीय संकलन
सुन्दर रचनाओं का संगम
ReplyDeleteशुभकामनाएं
आभार कबूतरों को जगह देने के लिये आज के सुन्दर अंक में यशोदा जी।
ReplyDeleteबढ़िया अंक
ReplyDeleteसांध्य मुखरित मौन में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
ReplyDeleteसुरुचिपूर्ण अंक -मुझे सम्सिलित करने का आभार!
ReplyDeleteसुंदर रुचपूर्ण, सभी रचनाकारों को साधुवाद
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