Monday, October 7, 2019

137....एक ही ब्लॉग से...साहित्य सुरभि

सादर अभिवादन
आज मीना दी नहीं हैं
येन-केन-प्रकारेण
ब्लॉग तो चालू रहेगा
आज की सभी रचनाएँ
बरसों से चर्चामंच में चर्चा कर रहे
भाई दिलबाग जी के ब्लॉग से..

सदियों से हैं हमसफ़र दोनों 
किनारे से मिले किनारा क्यों नहीं ?

यूँ ही खींच ली बीच में दीवारें 
जो मेरा है, तुम्हारा क्यों नहीं ?


ख़ामोशी है, तन्हाई है 
यादों ने महफ़िल सजाई है। 

दिल की बातें न मानो लोगो 
इश्क़ के हिस्से रुसवाई है। 


लोगों के पत्थर पूजने का सबब समझ आया 
जब से मेरा ख़ुदा हो गया है, वो एक पत्थर। 

साक़ी से कहना, वो अपना मैकदा खुला रखे 
दर्द ने फिर दस्तक दी है, दिल के दरवाजे पर। 


जितना ज्यादा सोचा है मैंने 
ख़ुद को उतना ही नाकाम पाया। 

मैं कौन हूँ तुम्हें भुलाने वाला 
हर धड़कन पर तेरा नाम पाया। 


अपने वुजूद से फैलाएँ रौशनी
दाद देना जुगनुओं की हिम्मत को।

पत्थर पिघलाने की ताक़त है इसमें
आज़माना ‘विर्क’ कभी मुहब्बत को।

सलाम दिलबाग जी को
इतनी प्यारी ग़ज़लें
आज के लिए बस
कल की कल ही देखेंगे
जयमाता रानी की
सादर


7 comments:

  1. बेहतरीन ग़ज़लें..
    आभार..
    सादर..

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  2. लाजवाब प्रस्तुति दिलबाग जी की हर रचना बेहतरीन।

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  3. शुभ संध्या छोटी बहना
    सुंदर ब्लॉग उम्दा लिंक चयन

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  4. आदरणीय दिलबाग सर की सारी गज़लें बेहद लाज़वाब, शानदार और सराहनीय है।
    बहुत अच्छी प्रस्तुति है दी।

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  5. बेहतरीन गजलों का गुलदस्ता सजाया है दिलबाग भाई ने।सभी गजलों सुंदर और सराहनीय हैं। बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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  6. बहुत ख़ूब....बेहतरीन ग़ज़लें
    विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं 🚩🙏

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