हमने भी ठान लिया है
पाँच लिंकों का आनन्द के किसी भी चर्चाकार को
पाँच लिंकों का आनन्द के किसी भी चर्चाकार को
यहाँ पर प्रस्तुति देने को बाध्य नहीं करेंगे
वे और हम, किसी से नहीं हैं कम
सादर अभिवादन...
आज प्रकाशित रचनाओं से कुछ नायाब मोती...
सादर अभिवादन...
आज प्रकाशित रचनाओं से कुछ नायाब मोती...
तेरा साथ हो मेरा हाथ हो
संग तेरे चाहत की बरसात हो
तुझे सोचूँ तुझको ही देखू
मिलने की तुझसे इक आस हो
रंग बिरँगी दुनिया हो अपनी
सिर्फ मीठा मीठा सा अहसास हो
मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ़ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,
उतर क्यों न आएँ नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे हृदय में उजेरा,
कटेगे तभी यह अँधेरे घिरे अब
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए...।
न होता, ये असीम फैलाव,
न जन्म लेती तृष्णा,
कुछ कम जाते,
भले ही, कामना रुपी ये तारे,
जो होते, आकाश के दो किनारे!
न बढ़ती पिपासा,
न होती, किसी भरोसे की आशा,
चाँद-चाँदनी की अनुपस्थिति में,
तारे खिलखिला रहे हैं।
कभी कभी अमावस भी होनी चाहिये।
बड़ा देश
अनगिनत लोग
समस्याएं
आनी जानी हैं
आदत
लक्ष्मी की
ना टिकने की
पुरानी है
सरकार
बदल देने से
थोड़े
बदल जानी हैं
...
आज बस यहीं तक
सादर
सादर
हमेशा की तरह बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteलेकिन कहीं न कहीं एक दर्द या कटु अनुभव जैसे तत्व का समावेश महसूस की है मैंने ।
जीवन, अत्यंत ही जटिल अनुभूति का दूसरा नाम है। जो संभल गया इसकी चोट से, वही पार उतर पाया। मैने भी इस मंच को हमेशा पार होते हुए पाया है।
अनंत शुभकामनाएं ।
बेहतरीन
ReplyDeleteचाहत की बरसात करने के लिए
ReplyDeleteतेरा साथ हो मेरा हाथ हो..
ये सुंदर पंक्तियाँ इस बात का संदेश है कि मानव अकेले पूर्ण नहीं है। गृहस्थ जीवनसाथी का साथ चाहता है, तो विरक्त ईश्वर का और
जो समाज के लिये सृजन कार्य में लगा है वह अपने शुभचिंतकों से यह उम्मीद करता है कि " साथी हाथ बढ़ाना "
मेरे संस्मरण को स्थान देने के लिये आपका बहुत- बहुत आभार यशोदा दी।
सभी को प्रणाम।
बेहतरीन अंक।
ReplyDeleteव्याकुल "पथिक" जी का लेखन प्रभावशाली था। लेकिन कमेंट नहीं कर सकते पता नहीं क्या गड़बड़ है।
उलूक का वार दर्द को सहलाता है।
क्षमा चाहता भैया,
Deleteआपने पढ़ा ,क्या यह खुशी मेरे लिये कम है।
नक्कारखानों में लगे रहना है
ReplyDeleteबस तूती जिन्दा रहे अपनी
इतना सा याद रखना है
वरना ये लाकर टाँग देना
एक खेल है पर अपना है :)
वाह बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीया दीदी जी
ReplyDeleteसभी रचनाएँ बहुत सुंदर 👌
सादर नमन शुभ संध्या 🙏
बेहतरीन प्रस्तुति एवम लिंक्स ....
ReplyDeleteघसीट लिया हमको यहाँ भी..
ReplyDeleteनहीं मानेंगे तो..?
ठीक है..
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर अंक। शशिभाई की रचना बार बार पढ़ने पर मजबूर करती है। जाने कहाँ गए वो दिन....जब बीस बीस रुपए के पटाखे मिलते थे हमें और उसमें भी इतने खुश, मानो खजाना मिल गया हो।
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