सादर अभिनन्दन
अंततः दीपावली का समापन हुआ
दीपक की बुझी लौ में गर्मी जब तक है
दीपावली रहेगी..
आज की प्रस्तुति में विशेष
श्रीलंका निवासी मेरी फेसबुक मित्र
दुल्कान्ति समरसिंह ने
अंततः दीपावली का समापन हुआ
दीपक की बुझी लौ में गर्मी जब तक है
दीपावली रहेगी..
आज की प्रस्तुति में विशेष
श्रीलंका निवासी मेरी फेसबुक मित्र
दुल्कान्ति समरसिंह ने
नया ब्लॉग लिखना प्रारम्भ किया है
आज की प्रस्तुति की पहली रचना उन्हीं के ब्लॉग से
आज की प्रस्तुति की पहली रचना उन्हीं के ब्लॉग से
गंगा जमुना अचिरावती
नदियों के पानी जैसे
हम लोगों में खुशियाँ हैं
स्वर्ग की तरह है ये त्योहार ।।
कविताओं का कंगन है
कहानियाँ तो कंचन हैं
भावनाओं का बंधन है
सुन्दरता का आंगन है ।।
मैं तो उजियारों का दाता रहा सदा से
ख़ुद को भवित वेदना मुझको खली नहीं थी,
कर्तव्यों से अति घनिष्ठ नाता जन्मों का
मुझे जलाने वालों की भी कमी नहीं थी।
चलन, दौर का मुझपर थोप चुके थे साथी
ड्योढ़ी पर तस्वीर टाँग कर वंदन करते,
निज प्रभुता में चूर कुंजरों से विशृंखल
निंदनीय नारे केवल अभिनंदन करते।
सुबह के साढ़े चार बज रहे थे, जब मैं होटल से बाहर निकला , तो देखा कि बुजुर्ग महिलाएँ टूटे सूप को पीट रही थीं ,कल दीपावली पर लक्ष्मी का आह्वान किया गया और आज दरिद्रता को घर से बाहर निकाला जा रहा था। जिसकी हमें आवश्यकता है ,उसका गुणगान करते हैं और अनुपयोगी वस्तुओं को पुराने सूप के समान दरिद्रता की निशानी बता,फेंक देते हैं , यद्यपि हम दूसरों को यह ज्ञान बांटते नहीं अघाते हैं कि सुख-दुःख सिक्के के दो पहलू हैं।
देश भर में पिछले 3 वर्षों से स्वच्छ शहरों में नं. 1 का खिताब जितने वाले इन्दौर में पिछले सप्ताह खबर सामने आई कि यहाँ के नगर-निगम में बायोमेट्रिक प्रणाली से उपस्थिति दर्शाने की अनिवार्यता के बावजूद 10 कर्मी ऐसे मिले जो पिछले कई वर्षों से कभी निगम में गये ही नहीं, किंतु प्रतिमाह हजारों रुपये उनके वेतन के सरकारी खजाने से निकलकर उनके बैंक खातों में जमा हो रहे हैं । चूंकि उपस्थिति बायोमेट्रिक प्रणाली से दर्ज होती थी इसलिये ये कर्मी निगम की किसी भी दूसरी ब्रांच में जाकर मशीनी सिस्टम पर अपनी उपस्थिति दर्शा देते और घर आकर दूसरे कामों में लग जाते ।
शब्दों
के
जोड़
जन्तर
जुगाड़ हैं
कुछ के
कुछ भी
कह लेने के
तरीके
बुलन्द हैं
सच के
झूठ के
फटे में
किसने
देखना होता है
....
आज बस
कल फिर मिलती हूँ
सादर..
....
आज बस
कल फिर मिलती हूँ
सादर..
ReplyDeleteकविताओं का कंगन है
कहानियाँ तो कंचन हैं
भावनाओं का बंधन है
सुन्दरता का आंगन है ।।
आपने कितनी अच्छी और भावनाओं से भरी रचना हम पाठकों के समक्ष रखी है। सबकुछ तो हमारे पास है, सिर्फ संतोष नहीं है, दूसरों को नीचा दिखाने की चाहत गयी नहीं है, इसलिए इन ढेरों खुशियों की अनुभूति हम नहीं कर पाते।
यशोदा दी मेरे जीवन की पाठशाला लेख को आज इस खूबसूरत प्रस्तुति मेंं शामिल करने के लिये हृदय से आभार , प्रणाम।
शुभ संध्या...
ReplyDeleteस्वागतम बहन दुल्कान्ति समरसिंह का
बेहतरीन प्रस्तुति..
सादर..
मेरी हार्दिक आभार आपका।
Deleteउत्तम प्रस्तुति... आभार मेरी पोस्ट भाई-भतीजावाद के इस युग में... को इसमें स्थान देने के लिये.
ReplyDeleteआभार यशोदा जी। सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteYashoda Agrawal जी, आप बहुत सुन्दर कर्तव्य कर रही हैं। आपको बहुत बधाइयां एवं शुभकामनाएं। मेरी हार्दिक आभार आपका।
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