Sunday, July 28, 2019

66---सीप की वेदना हृदय में लिये बैठी थी

स्नेहिल अभिवादन


मिट्टी था,
 किसने चाक पे रख कर घुमा दिया 
वह कौन हाथ था 
कि जो चाहा बना दिया। 

चलिए देखिए आज की प्रकाशित रचनाएँ
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रात का इंतज़ार कौन करे ....

बशीर बद्र

कोई काँटा चुभा नहीं होता 
दिल अगर फूल सा नहीं होता
 कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी यूँ 
कोई बेवफ़ा नहीं होता 
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 *वस्ल से पहले क्यों हिज़्र का फ़रमान दे दिया,* *
मुझको विदा किया और रास्ते का सामान दे दिया,* *
तुम तो कहते थे कि कीमती है हमारी मोहब्बत
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*हाल लिखा ....* 
*मेज के धरातल पर कील से हाल लिखा
 पूरी तफ़सील से तुम शहरी
, दोष भला तुमको क्या हम ही----
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शुजा ख़ावर की शायरी में दिखता है

 उनका सूफियाना मिज़ाज

 

मिट्टी था,
 किसने चाक पे रख कर घुमा दिया 
वह कौन हाथ था 
कि जो चाहा बना दिया। 
उर्दू शायरी की दुनिया में 
शुजा ख़ावर अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करते हैं। 
उनका सूफियाना मिज़ाज उनकी शायरी में बखूबी दिखता है। 
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सीप की वेदना हृदय में लिये बैठी थी 
एक आस का मोती, सींचा अपने वजूद से, 
दिन रात हिफाजत की सागर की गहराईयों में,
 जहाँ की नजरों से दूर,
 हल्के-हल्के लहरों के हिण्डोले में झूलाती,
 सांसो की लय पर मधुरम लोरी सुनाती, 
पोषती रही सीप अपने हृदी को प्यार से,
 मोती धीरे धीरे शैशव से निकल किशोर होता गया, 
सीप से अमृत पान करता रहा तृप्त भाव से
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सादर 
अनीता सैनी 

8 comments:

  1. सांध्य दैनिक में मेरी रचना के चयन हेतु हृदय तल से आभार ।
    बहुत उम्दा संकलन ।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

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  2. शुभ संध्या...
    आभार..
    बेहतरीन प्रस्तुति...
    सादर...

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  3. बढ़िया अंक सुन्दर प्रस्तुति।

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  4. सुंदर संयोजन

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  5. बहुत सुंदर लिंक्स। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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  6. मुखरित मौन का मधुर कलरव !

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  7. अति उत्तम संयोजन।

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