सादर अभिवादन
परिवर्तन संसार का नियम है
इसी के तहत
आज से यह अँक प्रतिदिन शाम को प्रकाशित होगा
थोड़ी असुविधा के चलते कभी कोई अंक
गायब भी हो सकता है
पर हर संभव कोशिश ये रहेगी कि व्यवधान न आए
परिवर्तन संसार का नियम है
इसी के तहत
आज से यह अँक प्रतिदिन शाम को प्रकाशित होगा
थोड़ी असुविधा के चलते कभी कोई अंक
गायब भी हो सकता है
पर हर संभव कोशिश ये रहेगी कि व्यवधान न आए
आज की प्रकाशित रचनाएँ.......
मौन में पसरी विरक्ति
टीसता है,छीलता मन
छटपटाता आसक्ति में
चाहता नेह का कारा
तुम्हारे मौन से विकल
जार-जार रोता मेरा मन
आस लिये ताकता है
निःशब्द मन का किनारा
ज़िंदगी के झंझटों ने उलझा दिया
ये न सोच कि मैंने तुझे भुला दिया।
शुक्रिया कहूँ ख़ुदा को या गिला करूँ
दर्द दिया, दर्द सहने का हौसला दिया।
तुझे बेवफ़ा कहना ठीक न होगा
मेरे मुक़द्दर ने ही मुझे दग़ा दिया।
पहचान तभी संभव है
जब तक सूरज है,
तमाम तरह के विमर्श में
सूरज को ध्यान में रखकर बात होती तो
संभवत: निष्कर्ष समाधान तक पहुंच पाती
परन्तु,अंधेरा इस कद्र हावी है कि
हमसब यहां तक भूल गये हैं कि
बगैर इसके एक काला घेरा मात्र हैं
अहं बहुत है निज प्रभुता का,
रौब दिखाता धीरे
बन वैरागी रास रचाता,
कमलताल के तीरे;
अस्त हुआ सूरज संध्या में, लालच में मतवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।
कई बार हम चाहते कुछ और हैं,
हो कुछ और जाता है।
मैं जाना कहीं और चाहती हूँ
पहुँच कहीं और जाती हूँ।
लिखना कुछ चाहती हूँ
लिख कुछ और जाती हूँ।
खूब बोलना चाहती हूँ
और खामोश रह जाती हूँ।
(इस ब्लॉग में कमेंट का ऑप्शन नही है)
थक जाते हैं सब पुतले दिनभर की भेड़चल से,
में जागकर अपना फर्ज निभाता हूँ,
कोई सूरज अपने ताक़त में जब मग़रूर दिखा,
बहुत सादगी मैं उसको दिया दिखता हूँ
जमाने भर की जिलालत से तो लड़ भी लेता हूँ,
घर आकर तुम्हारे मसलों से हार जाता हूँ,
क्या भीगी-भीगी धरती का,
तन-मन रोमांचित होता है ?
बोल पथिक ! क्या तेरे देस,
सावन अब भी ऐसा होता है ?
आज के अंक में सात रचनाएँ हो गई...
कल से पाँच हुआ करेगी..
सादर..
यशोदा
कल से पाँच हुआ करेगी..
सादर..
यशोदा
आपके हौसले को सलाम
ReplyDeleteआदरणीय दीदी..
Deleteसादर नमन..
सप्ताह में एक दिन आपके नाम..
सादर..
शानदार अंक !!
ReplyDeleteआपके हौसले और लगन को सलाम..., विभा दीदी के कथन से पूर्णतया सहमति ..
सादर..
शुभ संध्या। इसमे नए और बाल रचनाकारों को वरीयता दें।
ReplyDeleteसुझाव स्वीकार्य
Deleteसादर नमन..
तहे दिल से शुक्रिया और आभार आपका !
ReplyDeleteवाह दी..बहुत अच्छा प्रयास है..कुछ नये प्रयोग किये जा सकते हैं आज की रचनाएँ बेहद सराहनीय है प्रथम साध्य अंक की बधाई और मेरी अशेष शुभकानाएँ दी।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति 👌,शानदार रचनाएँ,सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई, प्रथम संध्या अंक की ढेरों शुभकामनायें दी जी |
ReplyDeleteप्रणाम
सादर
शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा यह अंक। आदरणीय यशोदाजी के प्रयासों के आगे नतमस्तक हूँ। निष्ठा और समर्पण की मिसाल हैं दी। शुभकामनाएँ। यह मौन दिन पर दिन और मुखर होता जाएगा।
ReplyDeleteमेरी रचना को यहाँ शामिल करने के लिए धन्यवाद दी। आपके ही लिए लिखी है, हमकदम का विषय इस रचना की प्रेरणा है।
ReplyDeleteबहुत आकर्षक संकलन,मुझे भी स्थान ददन के लिए आभार।
ReplyDeleteसभी को बधाई।
*देने
Deleteवाह शानदार यात्रा का आरंभ।
ReplyDeleteमेरी रचना को साझा करने की लिए हार्दिक धन्यवाद
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