सादर अभिवादन
कल हम तनिक से भी अधिक व्यस्त थे
फिर भी व्यवधान नही हुआ
कल शाम की प्रकाशित रचनाएँ...
कल हम तनिक से भी अधिक व्यस्त थे
फिर भी व्यवधान नही हुआ
कल शाम की प्रकाशित रचनाएँ...
आसपास की महिलाओं में प्रथम स्थान माँ का ही आता है उनसे समझ
और धैर्य लिया तो जीवन सँवरता गया.. बाद में उनसे ही मिलता जुलता
रूप हमारे बड़े भैया का रहा जो राह दिखलाने में सारथी बने , जिंदगी
जब भी उलझने लगी समझ और धैर्य पतवार बने.. आगे बढ़ने
पर बेटा ऊँगली थाम लिया.
प्यार करने वाले दीवाने कभी डरते नहीं।
लोग मजनूं कहते हैं मगर वो चिढ़ते नहीं।
मेरा दिल तोड़ा है तुमने गए दास्ता लिखकर।
अब नहीं मिल सकोगे हमसे तुम कभी हसकर।
वो आषाढ़ का पहला दिन था
मगर मैं अज्ञात उनसे मिलने चला
टिक-टिकी 4:45 की ओर इशारा कर रही थी
घनघोर घटा उमड़ रहे थे
मानो उनका भी मिलन महीनों बाद आज ही होने वाला था
वैसे मैं भी महीनों बाद ही मिलने वाला था
आकर हाथों की हद में सितारे छूट जाते हैं
हमेशा ख़्वाब रातों के सुबह में टूट जाते हैं।
मंजर खूब लुभाते हैं, वादियों के मगर
छूटते पटाखों से भरम बस टूट जाते हैं ।
अनाथ बच्चे घूमते दिखाई पड़ते थे और उन सबकी वह महारानी
द्रौपदी हस्तिनापुर के महल में निश्चेष्ट बैठी हुई शून्य को निहार रही थी ।
तभी, श्रीकृष्ण कक्ष में दाखिल होते हैं…
द्रौपदी कृष्ण को देखते ही दौड़कर उनसे लिपट जाती है …
कृष्ण उसके सिर को सहलाते रहते हैं और रोने देते हैं…
थोड़ी देर में, उसे खुद से अलग करके समीप के पलंग पर बैठा देते हैं।
द्रोपदी: यह क्या हो गया सखा ??
ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था
आज
अब
बस
थकावट सी है
यशोदा...
आज
अब
बस
थकावट सी है
यशोदा...
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteबहुत शानदार प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बधाई मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।
ReplyDeleteसस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार
ReplyDeleteसराहनीय प्रस्तुतीकरण
बड़े श्रम साधक हैं आप छोटी बहना
अपने स्वास्थ्य का ख्याल अवश्य रखें...
मुखरित मौन का सांंध्य संकलन सराहनीय प्रयास है दी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अंक है सभी रचनाएँ अच्छी लगी।
शानदार प्रस्तुति
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