सादर अभिवादन !
"सूर्य देव की तीव्र दृष्टि और धूप में पारा चरम पर ।
हो रिमझिम फुहारें तो मन की खिलन भी चरम पर ।।'
इन्द्र देव की कृपा वृष्टि के लिए इन दिनों
प्रकृति का कण-कण व्याकुल है ।
प्रकृति का कण-कण व्याकुल है ।
"मुखरित मौन" के बियालिसवें अंक में आपके लिए प्रस्तुत हैं विविध मनोभावों से सम्पन्न
सप्ताह भर के सूत्र--
सप्ताह भर के सूत्र--
बनाते नहीं हैं
सच्चाई,सुकून,भरोसा,येजीवन की खुश्बुएं हैं,
किसी से गर जो मिले,तो उसे भुलाते नहीं हैं,
ख्वाबों में जो खोया निश्छल,मुस्कुरा रहा हो,
ख्वाबों में जो खोया निश्छल,मुस्कुरा रहा हो,
ऐसी नींद से,उसको कभी भी,जगाते नहीं हैं।
आये बादल
छाने लगे अब थोड़े-थोड़े बादल लिये काली कोर
क्षितिज तक फैले कभी उस छोर कभी इस छोर।
पृथा पुलक रही मन मीत के आने की आहट सुन
नित नवीन होकर, उदीयमान होते थे दिनकर,
कलरव करते विहग, उड़ते थे मिल कर,
दालान जहाँ, होता था अपना घर!
चल रे मन, चल उस गाँव चल......
बन जाते हैं पहाड़ राई के
जो बातों ही बातों में
इतने बड़े हो जाते
फिर कोई नहीं चाहता है
चढ़ कर उतरना
गाँधी-घाट पर
दो दीयों से
वंचित रह गई
गंगा-आरती
जो थी नहीं
उस भीड़ में
कौतूहल भरी
तुम्हारी दो आँखें
मुझे निहारती
और देखभाल ने
पौधे में रोप दी
जिजीविषा ।
आशा ने
औषधि का
काम कर दिखाया ।
आज सुबह देखा
ऐसा फूल खिला !
मानो किसी ने
मांगी हो दुआ ।
मन में जब से तुम आये हो
आँखों खिले पलाशी बादल।
तुझसे जग मीठा नग़मा है
तुझ बिन लगे मिरासी बादल।।
बोली अनबोली आंखें
पता मांगती घर का
लिखा धूप में उंगली से
ह्रदय देर तक धड़का
कोलतार की सड़कों पर
राहें पिघली जेठ मास में---
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इजाजत दें… ..,मीना भारद्वाज
शुभ प्रभात..
ReplyDelete"सूर्य देव की तीव्र दृष्टि और धूप में पारा चरम पर ।
हो रिमझिम फुहारें तो मन की खिलन भी चरम पर ।।'
बेहतरीन प्रस्तुति...
सादर...
जी बेहतरीन रचनाओं की प्रस्तुति।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी
ReplyDeleteअति सुंदर
ReplyDeleteमेरी रचना (क्षणिकाओं) को इस अंक में स्थान देकर आपने जो मेरी रचना को मान दिया , उसके लिए हार्दिक धन्यवाद आपका ....
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