Monday, June 10, 2019

44....मुखरित मौन....आज एक ही ब्लॉग से

लोगों की..
आमदरफ्त बढ़ी
शायद टूट जाएगा
मौन....
मुखरित मौन का..
कसमसा रहा..
मुखर होने को...
थोड़ा सोचने दीजिए
कौन की तरकीब
लगाएँ...कि
मुखर हो जाए.....
चलिए .....चलते हैं
सोमवार को देखिए..इसकी मुखरता
.....

हमारा शहर अल्मोड़ा

कूड़ा 
तरतीब 
से संभाल
कर के 

नीचे 
वाले पड़ोसी
की गली में 

पौलीथिन में 
पैक किया 
हुआ मिलेगा

पानी हमारे 
घर का
स्वतंत्र रूप 
से खिलेगा


सोच तो सोच है, सोचने में क्या जाता है, और क्या होता है, 
अगर कोई सोच कर बौखलाता है

अपनी 
सोच के 
हिसाब से 
किसी पर भी 
कोई भी 
कुछ भी 
कह जाता है 


पता ही नहीं चलता है कि बिकवा कोई और रहा है, 
कुछ अपना और गालियाँ मैं खा रहा हूँ

 ‘उलूक’ 
देर से आयी 
दुरुस्त आयी 
आयी तो सही 

मत कह देना 
अभी से कि 
कब्र में 
लटके हुऐ 
पावों की 
बिवाइयों को 
सहला रहा हूँ ।


हाथी के निकलते अगर पर

चींटी की जगह
हाथी के अगर
पर निकलते
तो क्या होता
क्या होता
वही होता 
जो अकसर
हुआ करता है
जिसे सब 
आसानी से
मान जाते हैं


क्या कुछ कौन से शब्द चाहिये, कुछ या बहुत कुछ 
व्यक्त करने के लिये कोई है, जो चल रहा हो साथ में 
लेकर शब्दकोष, शब्दों को गिनने के लिये

शब्दकोश 
कितना बड़ा 
समेटे हुऐ 
खुद अपने में 
कितने कितने 
समझे बूझे हुऐ 
अनगिनत शब्द 
पर 
कहने के लिये 
अपनी 
इसकी उसकी 
आसपास की 
व्यथा कथा 
चाहिये 

-*-*-*-
गुस्ताखी माफ़
कभी-कभी तो आता हूँ
और कुछ....
ऊट-पटाँग कर जाता हूँ..
सादर..
दिग्विजय


11 comments:

  1. सुन्दर और सराहनीय अभिनव प्रस्तुति । जोशी जी के ब्लॉग की रचनाओं को पढ़ना अपने आप में एक सुखद अनुभव ।

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  2. एक ब्लॉग भानुमति का पिटारा अद्भुत वस्तुओं का संकलन।
    वाह प्रस्तुति।

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएँ

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति।सुंदर रचनाओं का संगम।सादर

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति 👌
    सादर

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  8. बहुत बहुत आभार सर..:)
    सुशील सर की रचनाएँ सबसे अलग होती हैं, सार्थक चिंतन और व्यवस्था के प्रति आक्रोश उनकी लेखनी को से मुखरित होकर विशेष अंदाज में संदेश दे जाती है।
    सबके लिए सबकुछ कहकर भी सब कुछ पहेलियों में समझा जाना सुशील सर की विशेषता है।
    निरंतर चलती रहे अविराम लेखनी यही शुभकामनाएँ है मेरी।
    बधाई एक बहुत सार्थक संंकलन के लिए।

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  9. 'उलूक' की बकबक से भर दिया
    मुखरित मौन से मौन ही हर दिया।

    ऊट पटाँग करने के लिये
    ऊट पटाँग छाँट ला कर धर दिया
    दिग्विजय जी ने 'उलूक' का
    उलूकपना ला कर
    अपना काम कर दिया।

    आभार।

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