Tuesday, April 13, 2021

690 ..माँ, कुछ तुमसे कह न पाया! ....विश्वमोहन कुमार

अहर्निश आहुति बनकर,
जीवन की ज्वाला-सी जलकर,
खुद ही हव्य सामग्री बनकर,
स्वयं ही ऋचा स्वयं ही होता,
साम याज की तू उद्गाता।

यज्ञ धूम्र बन तुम छाई हो,
जल थल नभ की परछाई हो,
सुरभि बन साँसों में आई,
नयनों में निशि-दिन उतराई,
मेरी चिन्मय चेतना माई।

मंत्र मेरी माँ, महामृत्युंजय,
तेरे आशीर्वचन वे अक्षय,
पल पल लेती मेरी बलैया,
सहमे शनि, साढ़ेसाती-अढैया,
मैं ठुमकु माँ तेरी ठइयाँ।

नभ नक्षत्रो से उतारकर,
अपलक नयनों से निहारकर,
अंकालिंगन में कोमल तन,
कभी न भरता माँ तेरा मन,
किये निछावर तूने कण कण।

गूंजे कान में झूमर लोरी,
मुँह तोपती चूनर तोरी,
करूँ जतन जो चोरी चोरी,
फिर मैया तेरी बलजोरी,
बांध लें तेरे नेह की डोरी।

तू जाती थी, मैं रोता था,
जैसे शून्य में सब खोता था,
अब तू हव्य और मैं होता था,
बीज वेदना का बोता था,
मन को आँसू से धोता था।

सिसकी में सब कुछ कहता था,
तेरी ममता में बहता था,
मेरी बातें तुम सुनती थी,
लपट चिता की तुम बुनती थी,
और नियति मुझको गुनती थी।

हुई न बातें अबतक पूरी,
हे मेरे जीवन की धुरी,
रह रह कर बातें फूटती हैं,
फिर मथकर मन में घुटती है,
फिर भी आस नहीं टूटती है।

कहने की अब मेरी बारी,
मिलने की भी है तैयारी,
लुप्त हुई हो नहीं विलुप्त!
खुद को ये समझा न पाया,
माँ, कुछ तुमसे कह न पाया!
....
आज बस
कल शायद फिर ऐसा ही
सादर

12 comments:

  1. जी, कोटिश: आभार!!!🙏🙏🙏

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  2. बहुत सुंदर,अगाध आस्था के साथ

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  3. बहुत ही सुंदर रचना। माँ, शब्द ही काफी है रचना की ओर खींच लाने को। शेष तो इक बहाव है....

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  4. बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना

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  5. मां के प्रति आस्था से परिपूर्ण उत्कृष्ट रचना ।

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  6. वाह!अद्भुत!ममता की स्याही में कलम डुबा कर रच डाली रचना विश्वमोहन जी ।

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  7. वाह ....मां की ममता का कोइ मोल नही
    बहुत सुन्दर रचना विश्वमोहन जी।

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  8. मौन भावों की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ।
    मन भावुक हो गया । आभार ।

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