Monday, April 12, 2021

689 ..दिलों की आलमारी में हिफ़ाजत से इसे रखना

सादर अभिवादन
आज भूल ही गए थे

आज की रचनाएँ देखिए


इश्क़ में अब तकलीफ़
क्यों हो रही है?
तुम्हारी तो जान बसती थी
उस दीवाने में?


दिलों की आलमारी में हिफ़ाजत से इसे रखना
इसी घर में मैं सब यादें पुरानी छोड़ जाऊँगा

मैं मिलकर ॐ में इस सृष्टि की रचना करूँगा फिर
ये धरती ,चाँद ,सूरज आसमानी छोड़ जाऊँगा


नदी ढूंढ लेती है अपना मार्ग
सुदूर पर्वतों से निकल
हजारों किलोमीटर की यात्रा कर
बिना किसी नक्शे की सहायता के
और पहुँच जाती है
एक दिन सागर तक
....
आज बस
कल भले ही तीस ले लीजिएगा
सादर


4 comments:

  1. आपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन

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  2. नवसंवत्सर और चैत्र नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं

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  3. बहुत सुंदर। मेरी रचना शामिल करने के लिए शुक्रिया।

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  4. छोटा सा अंक पर सुंदर रचनाओं से सजा, आभार !

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