Sunday, April 4, 2021

681 ...मैं उड़ रहा था हवाओं के सहारे, मेरी अपनी तो कोई औकात ही नहीं थी

सादर अभिवादन
आज का अंक 
ये कहिए ताबड़-तोड़ अंक है
सीधे चलते हैं रचनाओं की ओर

रोते हुए हँस देता है रातों को वो अक्सर
ये नींद में आते हुए ख़्वाबों का असर है

परदेस से लौटा है बहुत दिन पे मुसाफ़िर
अब ढूँढ रहा माँ की वो तस्वीर किधर है


मुझे याद है वह दिन ,
जब  मैं  मिट्टी से सना रहता था |
माँ को डर था कही हम गिर न जाए ,
इसलिए उगंली पकड़कर चलता था |


कैसे मनचाहे इरादों के साथ
मन चाहे लोगों को
इस और उस पार लाया ले जाया जाना है?
कैसे डोर का रंग बदला जाना है?
कैसे डर को एक नाम दिया जाना है?


फेसबुक पर मैडम की फोटो मचा रही कोहराम
देखो भईया बनाने आयी महिला अब प्रधान
जगह - जगह पोस्टर में वादों की एक लिस्ट छपी है
गजब बात ये है कि फोटो मैडम की भी छपी है
और नीचे लिखा हुआ है कि इनके पति हैं भोंदूराम


नहीं जानती
यह पड़ाव...
एकाग्र और स्थितप्रज्ञ
भाव का
प्रार्दुभाव है
या फिर..
उद्देश्यहीनता का
अंतहीन सिलसिला


अब जब रुक गया हूँ,
ज़मीन पर गिरा हूँ,
तब समझ में आया है
कि मैं उड़ रहा था
हवाओं के सहारे,
मेरी अपनी तो कोई
औकात ही नहीं थी.  
...
आज बस
सादर




 

7 comments:

  1. धन्यवाद मेरी रचना को शामिल करने के लिए

    ReplyDelete
    Replies
    1. मेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद

      Delete
  2. बहुत सुन्दर संकलन । मेरे सृजन को संकलन में शामिल करने के लिए सादर आभार ।

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सुंदर सराहनीय संकलन आदरणीया यशोदा दी जी।
    मेरे सृजन को स्थान देने हेतु दिल से आभार।
    सादर

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर रचनाओं का संकलन है। धन्यवाद यशोदा

    ReplyDelete
  5. Nice. Thanks for your valuable article. Technical Bagle

    ReplyDelete