Friday, April 2, 2021

679 ...आदमियत का पता तक नही गज़ब करते हो इन्सान ढूंढ़ते हो

आज तो हम भूल ही गए थे
दो रोज खाली थे
याद ही नहीं रहा
चलिए समय रहते याद आया
आइए रचनाओं की ओर चलें....

जीता मरता रोज यहां, जीवन उसका ताप
मजदूरों की पीड़ा को , नाप सके तो नाप

उनकी अपनी थी शंकाये, उनके अपने डर
तू अपने हर सपने को , निर्भयता से भर


मौसम का नज़रिया वही हालात वही है
मायूस सी ख़बरें लिए दिन -रात वही है

बस आग ,धुआँ ,आँधी है जंगल की कहानी
कहने का तरीका नया हर बात वही है


ये क्या कि पत्थरों के शहर में
शीशे का आशियाना ढूंढ़ते हो!

आदमियत  का पता  तक  नही
गज़ब करते हो इन्सान ढूंढ़ते हो !


फितरत है, ये तो इन्सानों की,
मुरझा जाने पर, करते है बातें फूलों की,
पतझड़ हो, तो हो बातें झूलों की,
उम्र भर, हो चर्चा भूलों की!


झूलते बचपन
के बीच
बीतते
उम्र के कालखंड की
बेबसी को...।
ये
घर
और खिडक़ी
एक दिन
किताब
में गहरे समा जाएंगे...।
....
लिंक चुनते और यहाँ तक आते -आते 3.30 बज गए
अब जाते हैं 
सादर


7 comments:

  1. हार्दिक आभार आपका ।सभी लिंक्स अच्छे और पठनीय।

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  2. बहुत आभार आपका यशोदा जी...। सभी लिंक अच्छे हैं और बेहतर चयन। सभी रचनाकारों को खूब बधाईयां

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  3. शुभ संध्या।।।
    मेरी रचना को भी स्थान देने हेतु धन्यवाद।

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  4. आत्मीय आभार मेरी रचना को सांध्य दैनिक में रखने के लिए।
    सभी रचनाकारों को बधाई, सभी रचनाएं सुंदर पठनीय।
    सादर।

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  5. बहुत अच्छे लिंक्स संजोए । आभार ।

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  6. सुंदर अंक ! सभी स्वस्थ व प्रसन्न रहें

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